मंगलवार, 17 नवंबर 2020

मरूआ का औषधीय उपयोग एवं गुणकारी लाभ -

                    मरूआ(marjoram) 

मरूआ औषधि भारतबर्ष वर्षा ऋतु के मौसम में स्वंम उत्पन्न होता है। मरुआ तुलसी की ही प्रजाति का एक पौधा होता है। इसके पत्ते बड़े, चिकने और नुकीले होते हैं। इसे वन तुलसी भी कहते हैं।

सफेद मरुआ औषधीय गुणों से भरपूर होते है -
ये तीखा,चरपरा, रूखा तथा गर्म फल का पित्त नाशक और बात नाशक, क्रमि और कुष्ठ रोग नाशक माना जाता है।
इसकी सुगंध से मच्छर और विषैले कीड़े आसपास नहीं आते है। इसकी तीव्र महक बहुत दूर तक फैलती है।

इसके प्रयोग से कई औषधीय दवाईयां बनाई जाती है -

सिर दर्द, टी. वी., पेट दर्द, खूनी अतिसार, मोच और सूजन इन सभी रोगों में मरूआ अत्यन्त लाभकारी होता है।
गठिया रोग में मरुआ के पौधे को जड़ सहित उबालने पर और 100 मिली ग्राम मात्रा को दिन में तीन वार उपयोग करने पर गठिया में लाभ मिलता है।
इसका प्रयोग कफ,बात और पेट के कीड़े को नष्ट करने में भी किया जाता है। यह जुकाम, अरुचि, स्वास, खांसी, बुखार, सूजन, त्वचा रोग और वर्ण आदि में प्रयोग किया जाता है। 
पेट के दर्द में मरुआ के बीजों को तथा पत्तों का चार ग्राम चूर्ण सुबह - शाम लेने से  दर्द  लाभ मिलता है। 
इसके पत्तों का रस निकाल कर एवं मधु में मिलाकर सेवन करने टीबी एवं खांसी रोग में लाभ मिलता है। 

मरुआ का नेत्र रोग एवं दंत रोग का औषधीय प्रयोग

नेत्र रोगों में भी मरुआ का भी प्रयोग किया जाता है। इसके लिए मरूआ एवं लहसुन के स्वरस को एक से दो बूँद को आँखों में डालने पर आँखों की लालिमा, फूलापन आदि में लाभ मिलता है। 
मुख से दुर्गन्ध आने पर इसकी चार पत्तियाँ पानी में उबालने पर उस पानी से कुल्ला करने पर दुर्गन्ध,पायरिया एवं oral problems से छुटकारा मिलता है। 
कान के दर्द में भी इसका औषधीय उपयोग कर सकते हैं। 
मरुआ का औषधि प्रयोग फटी एड़ियों एवं वमाईयो में - 
 इसके पत्तों में Antiseptics और Antivactirial गुण  जाते हैं।जिन लोगों की एड़ी वमाई फट जाती है इसके लिए इसकी पत्ती एवं फूलों को कुछ नीम पत्ती मिलाकर पेस्ट बना ले।और उस पेस्ट को फटी एड़ी व वमाई पर करीब आधे घंटे तक लगाए रखें। इससे काफी लाभ मिलेगा। 
एनीमिया होने पर इसकी पत्तियों की चटनी बनाकर आधा से एक चम्मच तक खाने से जल्द ही एनीमिया रोग से लाभ मिलता है। 
इसको natural albandazole भी कहते हैं। 

नीम के औषधीय गुण एवं फायदे - - - - - -

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