शनिवार, 31 अक्तूबर 2020

पहाड़ी इमली (Hill tamarind) के आयुर्वेदिक गुण एवं फायदे......

         पहाड़ी इमली (Hill tamarind)

पहाड़ी इमली का वीज सामन्य इमली के वीज से कम से कम 15-20 गुना अधिक वड़ा होता है। एक पहाड़ी इमली के वीज में लगभग 100 बादाम के बराबर ताकत होती है। और ये कई रोगों से लड़ने में मदद करता है।
                 

पहाड़ी इमली के फायदे..

खूनी वबासीर में ये पहाड़ी इमली का बीज़ लाभकारी है। कितनी भी पुरानी से पुरानी वबासीर में भी अधिक से अधिक लाभ मिलता है। 
इसमे पहाड़ी इमली के बीज़ की गिरी जलाकर राख बना ले तथा 5 ग्राम राख को 50-100 ग्राम दही में मिलाकर सेवन करने से वबासीर जड़ से खत्म हो जाती है। रोज सुबह शाम सेवन करने से खूनी वबासीर जल्दी ठीक हो जाएगी। 
                     
बार - बार पेशाब का आना,  पेशाब में जलन होना ऐसे रोगियों के लिए पहाड़ी इमली के बीज़ की गिरी को 10 ग्राम की मात्रा में लेकर सुबह और शाम को गाय के दुध से सेवन करे। 
पेशाब में जलन, पेशाब का जल्दी - जल्दी लगना, पेशाब पीली आना आदि रोगों में जल्दी राहत मिल जाती है। 
जो लोग heavy diet लेते है और अच्छे health building protein का प्रयोग करते हैं। उसके बाबजूद भी उनका शरीर उभर नहीं पाता है और शरीर में ताकत नहीं आती है उसके लिए आप पहाड़ी इमली का बीज़ लेकर उसे पानी में तीन दिन तक भिगोय रखें। 
                   
उसके बाद उसकी गिरी को सुखाकर उसका पाउडर बना ले तथा 10 ग्राम पाउडर को धागा मिश्री में मिला लें और सुबह शाम उसका सेवन करने से शरीर शक्तिशाली बनता है। 
इसकी गिरी का पाउडर बनाकर तथा उसमें गुड़ का मिश्रण करके 6-6 ग्राम की गोलियां बना ले और सुबह - शाम इसका सेवन करने से शरीर अधिक बलशाली बनता है। 
पहाड़ी इमली का उपयोग आयुर्वेद के में बहुत ही लाभदायक  रोगों का उपचार हेतु किया जाता है। 

भूमि आंवला(Land gooseberry) के चमत्कारिक गुण तथा इसके प्रयोग कई रोगों में औषधीय रूप में किया जाता है।

         भूमि आंवला (Land gooseberry) 

आयुर्वेद के अनुसार भूमि आंवला का प्रयोग चिकित्सा कार्यों में किया जाता है। भूमि आंवला को अमृत बूटी भी कहते हैं। भूमि आंवला के पौधे शाखाएं युक्त सीधे तथा जमीन पर फैलने वाले होते है।
इसके पत्ते छोटे तथा चपटे होते हैं। इस पर छोटे - छोटे फूल भी लगते है जो छोटे और गोल आंवले के समान ही होते है।
                

भूमि आंवला के फायदे -

शरीर के विजातीय तत्वों को बाहर निकालने में इसकी क्षमता बेजोड़ है।
पीलिया रोग में इसका उपचार रामबाण माना जाता है।
मुह के छालों, मसूड़े में सूजन, मूत्र व जननांगों के विकारों में इसका उपयोग किया जाता है।
टूटी हड्डियों में भी इसे पीसकर लगाया जाता है।
ये पेट के कीड़े को पनपने नहीं देता है तथा लिवर को भी मजबूत करता है।
एनीमिया, अस्थमा, ब्रोकाइटिस, खांसी, पेचिश, सूजा और हेपटाइटिस आदि रोगों में लाभकारी होता है।
अगर आपका विलरूवीन बड़ गया हो या पीलिया हो तो ऐसे में भूमि आंवला के पौधे को उखाड़ कर उसका काड़ा बनाएँ तथा उस काड़े का सेवन सुबह - शाम करे। पीलिया तथा विलरूवीन में फायदा मिल जाता है।
                 
अगर आप महीने में केवल एक बार इसका सेवन करते हैं। तो पूरे वर्ष भर आपको लिवर की समस्या से छुटकारा मिलता है।
अगर आपके यकृत (liver) में घाव हो जाते हैं इसमे य़ह बेहद लाभकारी है।
कई वार छालों में राहत नहीं मिलती है और विभिन्न प्रकार के छालों की समस्या उत्पन्न हो जाती है। और आप खाना भी नहीं कहा पाते हैं ऐसे में आप भूमि आंवला के पत्तों को चवाएं।
                 
छालों में जल्द ही छुटकारा मिल जाएगा।
य़ह मधुमेह के रोगियों के लिए भी काफी लाभकारी है। 
मधुमेह एक खतरनाक रोग है। 
ऐसे में मधुमेह से बचने के लिए आप भूमि आंवला में काली मिर्च मिलाकर इसका सेवन करे।इससे आप मधुमेह जैसी खतरनाक बीमारी से छुटकारा पा सकेंगे। 
य़ह आंतों के रोग में भी काफी लाभदायक है आंतों का रोग या assrtive colitis हो गया हो ।तो ऐसे में भूमि आंवला और दूब के पौधे को जड़ से उखाड़कर 3 से 4 दिन तक इसके रस का सेवन करे। रक्तस्राव बंद हो जाएगा साथ ही साथ आंतों के रोग में भी जल्दी लाभ मिलेगा। 
ये अमृत बूटी भूमि आंवला हमारे जीवन में बहुत ही लाभदायक है। 

बुधवार, 28 अक्तूबर 2020

गोखरू के आयुर्वेदिक गुण एवं कई रोगों की औषधि तथा उपचार किया जाता है।

                गोखरू (Bindii)

गोखरू का पौधा बालू तथा रेत में उगता है। ये पौधा ज्यादातर रेतीले स्थानों पर मिलता है गोखरू का पौधा अगस्त, सितंबर से लेकर फ़रवरी माह तक देखने को मिलता है।
गोखरू का स्वाद सूखने पर ठंडा हो जाता है। इसकी प्रकृति ठंडी होती है।

गोखरू के फायदे

                 

घनेरी के फायदे एवं औषधि गुण तथा इसके चमत्कारिक गुण


              घनेरी (Lattina camera)
घनेरी वनस्पति एक ऐसी वनस्पति है जो हमारे आस-पास ही पायी जाती है लेकिन इसके गुणों के वारे में हम नहीं जानते हैं इस जड़ी-बूटी को राइमुनिया भी कहा जाता है। संस्कृति भाषा में इसे अग्निमंत्र भी कहा जाता है। ये पौधा झाड़ी नुमा होता है और बहुत फैलता है। 
इसके फायदे एवं उपयोग -
 यदि आप सर्दी, जुकाम, सरदर्द से परेसान है तो इसके पत्तों को तोड़कर हाथों से मसल ले और सूंघे इसे सूंघने मात्र से सरदर्द ठीक हो जाता है इस पूरे पत्ते में ऐसे तत्व पाए जाते हैं जो मच्छरों को भगाने में बहुत कारगर है। 
ऐसे में आप घनेरी के पत्तों को तोड़कर घर में मच्छरों के वास करने बाले स्थानो पर डाले मच्छर का वास उस स्थान से हट जाएगा। 
               
इसके पत्तों को तोड़कर पानी में उबालकर चाय बनाकर पीने से शरीर में स्फूर्ति आ जाती है। और कमजोरी दूर हो जाती है
इसकी पत्तियाँ Antioxidants से भरपूर होती है इसमे जीवाणु रोधी गुण पाए जाते हैं। 
               
इसकी पत्तियों को पीसकर और इसका रस निकाल कर घाव पर लगाने से घाव शीघ्र से अति शीघ्र भर जाता है। तथा फोड़ा फुंसी पर लगाने से जल्दी ही ठीक हो जाते हैं। 
ये दांतों के दर्द को भी ठीक करता है। इसके लिए इसकी पत्तियों को हल्की धीमी आग पर तपाये जब एक चौथाई पत्तियाँ रह जाए तब उस पानी से कुल्ला करे। 
इसके प्रयोग से दातों के दर्द में बहुत आराम मिलता है। इसकी दातुन करने से भी दातों के दर्द में आराम मिलता है। 
बुखार में भी इसका प्रयोग करने से आराम मिलता है। 
घनेरी भी एक प्राकृतिक आयुर्वेदिक औषधि है। 

बुधवार, 21 अक्तूबर 2020

चांगेरी के औषधीय गुण एवं नशा छुड़ाने की कारगर औषधि इसका उपयोग आयुर्वेद में बहुत से रोगों में किया जाता है।

        चांगेरी (creeping woodsorrel) 

इस औषधि को आयुर्वेद में चांगेरी कहा जाता है इसे तीन पत्ता घास भी कहते है।संस्कृत साहित्य में इसे अम्ल पत्रिका कहते है य़ह लगभग हर स्थान पर पायी जाती है। नमी वाले स्थानो पर यह औषधि वर्ष भर पायी जाती है। इसे ज्यादातर खट्टी मीठी घास कहा जाता है ज्यादातर यह पौधा खेतों में खर-पतवार के रूप में पाया जाता है इसके पौधे पर पीले तथा गुलाबी रंग के पुष्प लगते हैं। 

              

ये चांगेरी औषधि अनेक प्रकार की औषधि गुणों से भरपूर होती है-

1-अगर आपको सिर दर्द की समस्या रहती है तो चांगेरी के पत्तों को पीसकर लगाएँ कुछ दिनों में दर्द से बिल्कुल छुटकारा मिल जाएगा। 

2-अगर खांसी, बलगम या कफ की समस्या होती है तो इसके पत्तों का रस निकालकर पानी में दो - दो बूंद मिलाकर नाक में डाले इससे जल्दी ही आराम होता है। 

                   

3-अगर छोटे बच्चों को भूख न लग रही हो या पाचन शक्ति कमजोर हो रही है तो ऐसे में चांगेरी के ताजे पत्तों के साथ पुदीना और अदरक की चटनी बनाकर खिलाए चटनी को खाने से बच्चों की भूख बहुत लगती है। 

4-अगर किसी की आंतों मे infaction की समस्या है तो चांगेरी के पत्तों का रस निकालकर इसका सेवन करे इससे जल्दी ही आंतों मे इन्फेक्शन ठीक होता है। 

                
5-ये चांगेरी चेहरे की सुन्दरता बढ़ाने के लिए फायदेमंद होती है इस चांगेरी के ताजे पत्तों का रस निकाल कर और सफेद चंदन में मिलाकर लेप बनाये और प्रतिदिन चेहरे पर करीब आधे घंटे तक लगाए और फिर चेहरे को पानी से साफ़ कर ले ऐसा करने से चेहरे की चमक और गोरापन बढ़ता है और चेहरे की झुर्रियां भी मिट जाती है। 

6-ये चांगेरी नशा छुड़ाने की एक कारगर औषधि है चाहे भांग, अफीम या शराब किसी भी प्रकार का नशा हो इसमे चांगेरी के पत्तों का रस निकाल कर प्रतिदिन पिलायें इससे धीरे-धीरे नशे की लत छुट जाती है इससे नशा करने की इच्छाशक्ति खत्म हो जाती है। 

इस चांगेरी का आयुर्वेद में एक बहुत ही लाभदायक औषधि के रूप में वर्णन किया गया है। 

मंगलवार, 13 अक्तूबर 2020

शेरपंजी (बाघपंजा) के चमत्कारिक गुण एवं इनका औषधीय उपयोग

          शेरपंजा (Tiger foot morning glory) 

इस चमत्कारिक औषधि की ज्यादातर शेरपंजी या वाघपंजा के नाम से पहचाना जाता है। ये औषधि एक तरह की वेल होती है जो भारतवर्ष में वर्षा ऋतु के मौसम में लगभग हर जगह पायी जाती है इसकी पत्तियों का आकार शेर तथा बाघ के पंजों की तरह होता है।                                                           

इस बेल में तो दो तरह की प्रजाति पायी जाती है एक मे पांच - पांच पत्ते और दूसरी मे सात - सात पत्ते पाए जाते है ।ये बेल रूएदार पायी जाती है। इसे हिंदी में पंचतंत्रीय के नाम से पहचाना जाता है और अंग्रेजी में Tiger foot morning glory के नाम से जानते हैं।

             

इस बेल औषधि में Antivactirial और Anti-inflammatory गुण पाए जाते हैं। और ये औषधि Antioxidants से भरपूर होती है। सदियों से इस औषधि का उपयोग त्वचा रोग में किया जाता है। 

इसके पत्तों का रस लगाने से फोड़ा, फुंसी खत्म हो जाते हैं। इसके पत्तों का पेस्ट बनाकर चेहरे पर लगाने से कील, मुँहासे से छुटकारा मिलता है और चेहरे पर निखार आ जाता है। इसके पत्तों को पीसकर घाव में लगाने से घाव शीघ्र भर जाता है इस औषधि में कैंसर विरोधी गुण पाए जाते हैं। 

इस शेरपंजी औषधि का उपयोग आयुर्वेद में बहुत से रोगों का उपचार करने हेतु किया गया है।

सोमवार, 12 अक्तूबर 2020

दूधिया(दुग्दिका) के औषधीय उपयोग

             दूधिया (Euphoribia hirta

ये दूधिया औषधि भारत के लगभग हर प्रांत में पायी जाती है। ये दूधिया औषधि हमारे आस-पास खेतों में भी खर-पतवार के रूप में पायी जाती है। आमतौर पर देखा जाए तो दूधिया घास दो प्रकार की होती है। 

छोटी दूधि को नागार्जुनी भी कहते हैं ये जमीन पर छत्तो के आकार में फैलती है। और इसके कारण जमीन सुंदर और सुशोभित लगती है इसकी पत्तियाँ छोटी-छोटी और गोल आकार की होती है। 

छोटी दूधि और बड़ी दूधि गुण धर्म में एक समान होती है इसके पुष्प गुच्छों में होते हैं और सूक्ष्म होते हैं। 

                

दूधि के गुण धर्म और विधि के बारे में -

ये कफ और पित्त नाशक है इसके साथ-साथ रक्त शोधक और वातवर्धक है।

अगर आपके चेहरे पर कील, मुँहासे, दाद, खुजली और दाग धब्बे आदि है दूधि औषधि का दुध निकालकर उसे अपने चेहरे पर लगाए कुछ ही  दिनों में आपका चेहरा स्वच्छ और सुंदर लगने लगेगा। 

अगर आपके माथे के बाल झड़ रहे हो तो दूधि औषधि को जड़ से उखाड़ ले और स्वच्छ पानी में धोकर दूधि का रस निकाल लें। इसके साथ-साथ पीले कनेर का रस निकालकर उसमें मिला लें और सिर के गंजे हिस्से पर घिसे दिन में दो बार लगाएं लगभग 15 दिनों तक ये उपचार करने से गंजापन दूर हो जाता है इसके कारण अगर कोई एलर्जिक समस्या हो तो इसका प्रयोग बंद कर दे। 

                    

आँखों के लिए भी दूधि बहुत ही लाभदायक है आँखों की रंतौंधी में छोटी दूधि के दूध में सलाई को तरकर नेत्रों मे सलाई को अच्छी तरह फिराएं इससे वेदना होती है लेकिन थोड़ी देर में वेदना शांत हो जाती है। इसका उपयोग करने से रतौंधी रोग जड़ से खत्म हो जाएगी। 

                     
दूधि को लगभग 10 ग्राम पीसकर पानी के साथ लगातर सेवन करने से आंतें बहुत ही मजबूत हो जाती है। जिसके कारण संग्रहणीय और अतिसार मिट जाएगा। 

दूधि के पाउडर को शहद के साथ मिलाकर इसका सेवन करने से दमा रोग मे बहुत ही लाभ मिलता है। 

छोटी दूधि और बड़ी दूधि का पाउडर बनाकर विधि पूर्वक सेवन करने से अनेक रोगों में फायदा मिलता है। छोटी दूधि और बड़ी दूधि दोनों का उपयोग आयुर्वेद में लाभहित के लिए किया गया है। 

शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2020

कोषपुष्पी (कंचट) के औषधीय गुण एवं फायदे

                     कोषपुष्पी(commelina benghalensis) 

कोषपुष्पी को कंचट के नाम से भी जाना जाता है। ये औषधि पूरे भारतवर्ष में आसानी से मिल जाती है ये औषधि वर्षा ऋतु में अधिक एवं हर जगह पर पायी जाती है। 
इसका तना बहुत ही मुलायम होता है अधिक पानी में होने के कारण इस पौधे का तासीर शीतल होता है। 

कोषपुष्पी के औषधीय गुण -

                
1- सुबह खाली पेट इसका सेवन करने से पेट संबंधी तमाम         रोगों से छुटकारा मिलता है कंचट के पौधे से रस निकाल         कर 30-40 मिली ग्राम रस का सेवन करे। 
2- किडनी में अगर दर्द, सूजन आदि समस्या है तो 30 मिली       ग्राम रस निकाल कर सुबह खाली पेट एवं दोपहर, शाम         को इसका सेवन करने से किडनी की सारी समस्या दूर हो       जाती है। 
                
3- ये कंचट बूटी शुगर के मरीजों के लिए भी काफी फायदेमंद      है अगर कोई बहुत ज्यादा इंसुलिन का इंजेक्शन लेता है         तो शुगर को कंट्रोल करने के लिए इसका भी प्रयोग कर         सकते है। 
4-इसका रस हमारे शरीर में जाने के बाद पेट को ठंडा करता     है तथा खून को साफ करने में मदद करता है
5- पथरी और कुष्ठ रोगों में ये कोषपुष्पी बहुत ही रामबाण है
6- पेट संबंधी विकारों मे ये कोषपुष्पी का पौधा बहुत ही              लाभदायक है। 
                 
7- खूनी एवं वादी बवासीर में कोषपुष्पी के पौधे का बहुत ही       लाभदायक उपयोग होता है इसके लिए बहुत ही सरल सा       उपयोग किया जाता है इसके 4-5 पत्तों को लेकर उनको         मसलकर रस निकाल लें और मस्सों पर 5-6 दिन तक           प्रयोग करें इसका मस्सा सूखकर निकल जाएगा और             बवासीर की समस्या से छुटकारा मिल जाएगा। 
8-ये कोषपुष्पी का पौधा बहुत सी विटामिन तत्वों से भरा            होता है। 

रविवार, 4 अक्तूबर 2020

अतिवला(Abutilon indicum)

            अतिवला(Abutilon indicum)

अतिवला की प्रशंसा भारतीय आयुर्वेद ग्रंथों में की गई है इसके पत्ते अंडाकार, ह्रदय के आकार वाले होते हैं। और अग्र भाग पर नुकीले होते हैं। अतिवला की गिनती आयुर्वेद के सर्वश्रेष्ठ ताक़तवर औषधियों में इसकी गिनती होती है ये औषधि ताकत का खजाना होती है। 

                  

इसे संस्कृति में अतिवला कहा जाता है। इसका दूसरा नाम करेटी है इसको गुजराती में कपाट कहते हैं इसे अँग्रेजी मे countrymilo, indianmilo कहते हैं। 

इसका वानस्पतिक नाम Abutilon indicum है इसकी चार प्रजातियां पायी जाती है-वला, अतिवला,राजवला और महावला ये चारो बलाएँ शक्ति का खजाना मानी जाती है। 

दुबले पतले लोगों के लिए ये औषधि रामबाण होती है ये शरीर की कमजोरी को खत्म कर देती है। 

इसका औषधीय प्रयोग निम्न प्रकार से करते है -

1-शरीर की कमजोरी दूर करने के लिए इसकी जड़ों को दूध में उबालकर सेवन करने से फायदा मिलता है इसके बीजों का भी सेवन दूध में मिलाकर किया जाता है। 

2-अतिवला का ताजा रस घी तथा शहद के साथ एक वर्ष लगातर सेवन करने से शरीर अधिक बलशाली बनता है। 

3-अतिवला के पत्तों का काड़ा बनाकर उसको ठंडा करके आँखों धोने से आँखों की सभी प्रकार की समस्या दूर होती है। 4-अतिवला का प्रयोग दाँतों के दर्द के लिए भी किया जाता है इसका काड़ा बनाकर गरारा करने से दांतों के रोगों से छुटकारा मिलता है। 

                     

5-पुरानी खांसी को ठीक करने में अतिवला बहुत ही लाभदायक है इसके पीले फ़ूलों का चूर्ण बना लें जिसकी मात्रा 1-2 ग्राम होनी चाहिए उस चूर्ण को देशी घी के साथ लेने से पुरानी से पुरानी खांसी खत्म हो जाती है खून बाली उल्टी में काफी लाभ मिलता है। 

6-वबसीर में अतिवला का उपयोग रामबाण है इसके बीजों को कूटकर शाम को पानी में भिगो दे सुबह खाली पेट 10-20 मिलीग्राम पानी का सेवन करने से वबासीर रोग से निजात मिलती है। 

7-आपको अगर मूत्र से सम्बंधित कोई रोग हो तो अतिवला की जड़ को पानी में उबालकर उसका सेवन करने से आपको बहुत ज्यादा लाभ मिलेगा ।

8-आयुर्वेद में अतिवला का उपयोग ज्वर के निवारण में किया जाता है अतिवला के 10-20 मिलीग्राम काड़ा में 1 ग्राम सोठ का चूर्ण मिलाए और शाम को रख दे सुबह उस पानी को पी लें वार - बार बुखार आने से निजात मिल जाएगी। 

आयुर्वेद में अतिवला का उपयोग गंभीर से गंभीर रोग के उपचार हेतु किया जाता है। 

गुरुवार, 1 अक्तूबर 2020

एलोवेरा या घृतकुमारी(संजीवनी) के बहुत से औषधीय गुण एवं उपयोग हमारे जीवन में होते हैं।

           एलोवेरा या घृतकुमारी(Asphodelaceae) 

हर इंसान की सबसे बड़ी दौलत उसकी सेहत होती है एलोवेरा को आयुर्वेद में संजीवनी कहा गया है। 

त्वचा की देखभाल से लेकर बालो की खूबसूरती तक और घाव को भरने से लेकर सेहत की सुरक्षा तक इस चमत्कारिक औषधि का कोई जवाब नहीं है। 

एलोवेरा को आयुर्वेद में घृतकुमारी कहा गया है। इसका नाम ग्वारपाटा, क्वारगंदल है।

इसके फायदे एवं गुण -

1- वर्णरोपण- शरीर में कहीं घाव हो जाए तो उसको भरता है।2- सूजन को कम करता है। 

3-रक्तशोधक- खून की सफाई करता है दीपन है, पाचन है यानी कि आपके पाचन तंत्र को मजबूत करता है liver के लिए बहुत लाभदायक है। 

4-इनमें अनेक प्रकार के nutrients मौजूद है nutrients होने की बजह से ये पोषक भी है। तथा शक्ति को बढ़ाता है। इसीलिए इसका प्रयोग आमतौर पर आयुर्वेदिक औषधि बनाने में किया जाता है। 

                       

5-एलोवेरा से हमारी immunity power strong होती है। 

6-सुबह खाली पेट 2-3 चम्मच पीने से कई रोगों से फायदा मिलता है। 

7-ये full of nutrients है इसमे antioxidants भी पाया जाता है। 

एलोवेरा मे बहुत से तत्व पाए जाते हैं। 

8-एलोवेरा के सेवन से पोषक तत्वों की कमी को पूरा किया जा सकता है। इसमें लगभग 70-75 nutrients होते हैं amino acid, vitamins, minerals होते है मुख्य रूप से vitamin A, vitamin E, zinc, magnesium , calcium और प्रोटीन से भरपूर है ये skin बहुत ही लाभकारी है। 

ये हमारे शरीर के free redicls को साफ करते रहते हैं। 

एलोवेरा बहुत से रोगों की दवा है-

                     

1-पेट में कब्ज, कोलाइटिस, आईवीएस, मोटापा तथा liver function को ठीक करने में मदद करता है। 

 2-स्किन के रोगों में फायदेमंद पिंपल्स,खाज - खुजली को ठीक करता है।

3-वालों के लिये वरदान है एलोवेरा इसका लेप लेकर जड़ों मे मसाज करे

4-ये खून को साफ करता है अगर कोलेस्ट्राल बड़ा हुआ है और ट्राईग्लशराइड बड़े हुए हैं उसमे बहुत अच्छा काम करता है।

5-जोड़ों के दर्द में बहुत लाभदायक है थकान और कमजोरी को दूर करता है ये आपकी energy label बढ़ाता है। 

6-डायबिटीज होने पर एलोवेरा और आंवले का रस मिलाकर लें बहुत ही लाभदायक है। 

7-ये कैंसर की रोकथाम में भी सहायता करता है रीसर्च के अनुसार anti cancer मे अल्काइन होता है इसीलिए cancer में अल्काइन का उपयोग बहुत कराया जाता है। 

एलोवेरा हमारे जीवन में बहुत उपयोगी संजीवनी है। 

नीम के औषधीय गुण एवं फायदे - - - - - -

नीम के औषधीय गुण एवं फायदे - - -   नीम भारत वर्ष का बहुत ही चर्चित और औषधीय वृक्ष माना जाता है ये भारत वर्ष में कल्प - वृक्ष भी माना जाता है...