नीम के गुण - - -
नीम के पेड़ के हर हिस्से को औषधीय रूप में प्रयोग किया जाता है। पेट में आंत या लिवर के अल्सर, मलेरिया, डेंगू आदि में नीम बहुत ही लाभकारी औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है।
मरोड़ फली के आयुर्वेदिक गुण एवं औषधीय सुझाव |
मरोड़ फली के आयुर्वेदिक गुण |
आयुर्वेदिक औषधि एवं फायदे |
आयुर्वेदिक औषधि एवं फायदे |
इस औषधि को आयुर्वेद में चांगेरी कहा जाता है इसे तीन पत्ता घास भी कहते है।संस्कृत साहित्य में इसे अम्ल पत्रिका कहते है य़ह लगभग हर स्थान पर पायी जाती है। नमी वाले स्थानो पर यह औषधि वर्ष भर पायी जाती है। इसे ज्यादातर खट्टी मीठी घास कहा जाता है ज्यादातर यह पौधा खेतों में खर-पतवार के रूप में पाया जाता है इसके पौधे पर पीले तथा गुलाबी रंग के पुष्प लगते हैं।
1-अगर आपको सिर दर्द की समस्या रहती है तो चांगेरी के पत्तों को पीसकर लगाएँ कुछ दिनों में दर्द से बिल्कुल छुटकारा मिल जाएगा।
2-अगर खांसी, बलगम या कफ की समस्या होती है तो इसके पत्तों का रस निकालकर पानी में दो - दो बूंद मिलाकर नाक में डाले इससे जल्दी ही आराम होता है।
3-अगर छोटे बच्चों को भूख न लग रही हो या पाचन शक्ति कमजोर हो रही है तो ऐसे में चांगेरी के ताजे पत्तों के साथ पुदीना और अदरक की चटनी बनाकर खिलाए चटनी को खाने से बच्चों की भूख बहुत लगती है।
4-अगर किसी की आंतों मे infaction की समस्या है तो चांगेरी के पत्तों का रस निकालकर इसका सेवन करे इससे जल्दी ही आंतों मे इन्फेक्शन ठीक होता है।
5-ये चांगेरी चेहरे की सुन्दरता बढ़ाने के लिए फायदेमंद होती है इस चांगेरी के ताजे पत्तों का रस निकाल कर और सफेद चंदन में मिलाकर लेप बनाये और प्रतिदिन चेहरे पर करीब आधे घंटे तक लगाए और फिर चेहरे को पानी से साफ़ कर ले ऐसा करने से चेहरे की चमक और गोरापन बढ़ता है और चेहरे की झुर्रियां भी मिट जाती है।
6-ये चांगेरी नशा छुड़ाने की एक कारगर औषधि है चाहे भांग, अफीम या शराब किसी भी प्रकार का नशा हो इसमे चांगेरी के पत्तों का रस निकाल कर प्रतिदिन पिलायें इससे धीरे-धीरे नशे की लत छुट जाती है इससे नशा करने की इच्छाशक्ति खत्म हो जाती है।
इस चांगेरी का आयुर्वेद में एक बहुत ही लाभदायक औषधि के रूप में वर्णन किया गया है।
इस चमत्कारिक औषधि की ज्यादातर शेरपंजी या वाघपंजा के नाम से पहचाना जाता है। ये औषधि एक तरह की वेल होती है जो भारतवर्ष में वर्षा ऋतु के मौसम में लगभग हर जगह पायी जाती है इसकी पत्तियों का आकार शेर तथा बाघ के पंजों की तरह होता है।
इस बेल में तो दो तरह की प्रजाति पायी जाती है एक मे पांच - पांच पत्ते और दूसरी मे सात - सात पत्ते पाए जाते है ।ये बेल रूएदार पायी जाती है। इसे हिंदी में पंचतंत्रीय के नाम से पहचाना जाता है और अंग्रेजी में Tiger foot morning glory के नाम से जानते हैं।
इस बेल औषधि में Antivactirial और Anti-inflammatory गुण पाए जाते हैं। और ये औषधि Antioxidants से भरपूर होती है। सदियों से इस औषधि का उपयोग त्वचा रोग में किया जाता है।
इसके पत्तों का रस लगाने से फोड़ा, फुंसी खत्म हो जाते हैं। इसके पत्तों का पेस्ट बनाकर चेहरे पर लगाने से कील, मुँहासे से छुटकारा मिलता है और चेहरे पर निखार आ जाता है। इसके पत्तों को पीसकर घाव में लगाने से घाव शीघ्र भर जाता है इस औषधि में कैंसर विरोधी गुण पाए जाते हैं।
इस शेरपंजी औषधि का उपयोग आयुर्वेद में बहुत से रोगों का उपचार करने हेतु किया गया है।
ये दूधिया औषधि भारत के लगभग हर प्रांत में पायी जाती है। ये दूधिया औषधि हमारे आस-पास खेतों में भी खर-पतवार के रूप में पायी जाती है। आमतौर पर देखा जाए तो दूधिया घास दो प्रकार की होती है।
छोटी दूधि को नागार्जुनी भी कहते हैं ये जमीन पर छत्तो के आकार में फैलती है। और इसके कारण जमीन सुंदर और सुशोभित लगती है इसकी पत्तियाँ छोटी-छोटी और गोल आकार की होती है।
छोटी दूधि और बड़ी दूधि गुण धर्म में एक समान होती है इसके पुष्प गुच्छों में होते हैं और सूक्ष्म होते हैं।
दूधि के गुण धर्म और विधि के बारे में -
ये कफ और पित्त नाशक है इसके साथ-साथ रक्त शोधक और वातवर्धक है।
अगर आपके चेहरे पर कील, मुँहासे, दाद, खुजली और दाग धब्बे आदि है दूधि औषधि का दुध निकालकर उसे अपने चेहरे पर लगाए कुछ ही दिनों में आपका चेहरा स्वच्छ और सुंदर लगने लगेगा।
अगर आपके माथे के बाल झड़ रहे हो तो दूधि औषधि को जड़ से उखाड़ ले और स्वच्छ पानी में धोकर दूधि का रस निकाल लें। इसके साथ-साथ पीले कनेर का रस निकालकर उसमें मिला लें और सिर के गंजे हिस्से पर घिसे दिन में दो बार लगाएं लगभग 15 दिनों तक ये उपचार करने से गंजापन दूर हो जाता है इसके कारण अगर कोई एलर्जिक समस्या हो तो इसका प्रयोग बंद कर दे।
आँखों के लिए भी दूधि बहुत ही लाभदायक है आँखों की रंतौंधी में छोटी दूधि के दूध में सलाई को तरकर नेत्रों मे सलाई को अच्छी तरह फिराएं इससे वेदना होती है लेकिन थोड़ी देर में वेदना शांत हो जाती है। इसका उपयोग करने से रतौंधी रोग जड़ से खत्म हो जाएगी।
दूधि को लगभग 10 ग्राम पीसकर पानी के साथ लगातर सेवन करने से आंतें बहुत ही मजबूत हो जाती है। जिसके कारण संग्रहणीय और अतिसार मिट जाएगा।
दूधि के पाउडर को शहद के साथ मिलाकर इसका सेवन करने से दमा रोग मे बहुत ही लाभ मिलता है।
छोटी दूधि और बड़ी दूधि का पाउडर बनाकर विधि पूर्वक सेवन करने से अनेक रोगों में फायदा मिलता है। छोटी दूधि और बड़ी दूधि दोनों का उपयोग आयुर्वेद में लाभहित के लिए किया गया है।
अतिवला की प्रशंसा भारतीय आयुर्वेद ग्रंथों में की गई है इसके पत्ते अंडाकार, ह्रदय के आकार वाले होते हैं। और अग्र भाग पर नुकीले होते हैं। अतिवला की गिनती आयुर्वेद के सर्वश्रेष्ठ ताक़तवर औषधियों में इसकी गिनती होती है ये औषधि ताकत का खजाना होती है।
इसका वानस्पतिक नाम Abutilon indicum है इसकी चार प्रजातियां पायी जाती है-वला, अतिवला,राजवला और महावला ये चारो बलाएँ शक्ति का खजाना मानी जाती है।
दुबले पतले लोगों के लिए ये औषधि रामबाण होती है ये शरीर की कमजोरी को खत्म कर देती है।
इसका औषधीय प्रयोग निम्न प्रकार से करते है -
1-शरीर की कमजोरी दूर करने के लिए इसकी जड़ों को दूध में उबालकर सेवन करने से फायदा मिलता है इसके बीजों का भी सेवन दूध में मिलाकर किया जाता है।
2-अतिवला का ताजा रस घी तथा शहद के साथ एक वर्ष लगातर सेवन करने से शरीर अधिक बलशाली बनता है।
3-अतिवला के पत्तों का काड़ा बनाकर उसको ठंडा करके आँखों धोने से आँखों की सभी प्रकार की समस्या दूर होती है। 4-अतिवला का प्रयोग दाँतों के दर्द के लिए भी किया जाता है इसका काड़ा बनाकर गरारा करने से दांतों के रोगों से छुटकारा मिलता है।
5-पुरानी खांसी को ठीक करने में अतिवला बहुत ही लाभदायक है इसके पीले फ़ूलों का चूर्ण बना लें जिसकी मात्रा 1-2 ग्राम होनी चाहिए उस चूर्ण को देशी घी के साथ लेने से पुरानी से पुरानी खांसी खत्म हो जाती है खून बाली उल्टी में काफी लाभ मिलता है।
6-वबसीर में अतिवला का उपयोग रामबाण है इसके बीजों को कूटकर शाम को पानी में भिगो दे सुबह खाली पेट 10-20 मिलीग्राम पानी का सेवन करने से वबासीर रोग से निजात मिलती है।
7-आपको अगर मूत्र से सम्बंधित कोई रोग हो तो अतिवला की जड़ को पानी में उबालकर उसका सेवन करने से आपको बहुत ज्यादा लाभ मिलेगा ।
8-आयुर्वेद में अतिवला का उपयोग ज्वर के निवारण में किया जाता है अतिवला के 10-20 मिलीग्राम काड़ा में 1 ग्राम सोठ का चूर्ण मिलाए और शाम को रख दे सुबह उस पानी को पी लें वार - बार बुखार आने से निजात मिल जाएगी।
आयुर्वेद में अतिवला का उपयोग गंभीर से गंभीर रोग के उपचार हेतु किया जाता है।
नीम के औषधीय गुण एवं फायदे - - - नीम भारत वर्ष का बहुत ही चर्चित और औषधीय वृक्ष माना जाता है ये भारत वर्ष में कल्प - वृक्ष भी माना जाता है...