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शनिवार, 9 अक्तूबर 2021

नीम के औषधीय गुण एवं फायदे - - - - - -

नीम के औषधीय गुण एवं फायदे- - - 
नीम भारत वर्ष का बहुत ही चर्चित और औषधीय वृक्ष माना जाता है ये भारत वर्ष में कल्प - वृक्ष भी माना जाता है। नीम अपने कड़वे स्वभाव व औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है।   नीम पर्यावरण के लिए जितना उत्तम माना जाता है उतना ही अधिक स्वास्थ्य लाभ के लिए भी।
नीम का वृक्ष लंबा और शाखाएँ फैली हुई होती है नीम की पिण्डी गोल एवं लंबी आकर में होती है नीम का उपयोग अधिक से अधिक आयुर्वेदिक औषधि एवं चिकित्सा के रूप में किया जाता है। 
                             
  नीम के फल को निवौली कहते हैं निवौली हरे रंग का गुठलीदार फल होता है जोकि औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है।
नीम के औषधीय उपयोग - - - 
1- अगर कोई व्यक्ति किसी दुर्घटना से आग में जल जायेे तो तुरंत ही नीम की पत्तियों को पीसकर लेप बनाकर उस जले हुए स्थान पर लेप को लगा लेना चाहिए। इससे फल्के और जलन का प्रभाव खत्म हो जाएगा।
2- अगर किसी के कान में दर्द होता है तो नीम के तेल को कान में डालें इससे कान के अंदर की फुंसी ठीक हो जाएगी तथा दर्द से निजात मिल जाएगी।
3- अगर आपके दातों में खून आता है व पायरिया की शिकायत हो इसमें नीम की दातुन को दातों में करने से पायरिया एवं खून आने जैसी रोगों से निजात मिलती है।
4- नीम की छाल (पपड़ी ) को पीसकर फोड़ा, फुंसी के ऊपर उसका लेप लगाने से फोड़ा, फुंसी ठीक हो जाता है।
5- नीम का काड़ा पीने से बुखार जैसी समस्या दूर हो जाती है।
6- नीम की पत्तियों को पीसकर इसकी क्रीम बनाकर चेहरे पर लगाने से मुँहासे तथा झुर्रियों में लाभ मिलता है। क्योंकि इसमे anti biotic गुड़ पाए जाते हैं।

नीम के गुण - - -

नीम में एंटी वैक्टीरियल, एंटी फंगल, एंटी आक्सीडेंट, एंटी वायरल जैसे गुण पाये जाते हैं। नीम साँप के जहर को भी कम करने में अच्छा उपयोगी होता है।
नीम गुर्दे की पथरी को खत्म करने में सहायक होता है नीम की पत्तियों को राख बनाकर दिन में दो बार उपयोग करने से गुर्दा की पथरी कटकर मूत्र मार्ग से बाहर निकल जाती है।
नीम और बेर के पत्तों को उबालकर उसके पानी को ठंडा करके बालो को धोने से बालों का गिरना बंद हो जाता है। तथा बाल काले और मजबूत हो जाते हैं।

नीम के पेड़ के हर हिस्से को औषधीय रूप में प्रयोग किया जाता है। पेट में आंत या लिवर के अल्सर, मलेरिया, डेंगू आदि में नीम बहुत ही लाभकारी औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है।
नीम की दातुन का उपयोग प्राचीन काल से लेकर आज तक होता चला आ रहा है। नीम की दातुन करने से दांत मजबूत और चमकदार होते हैं तथा दांतों में पायरिया तथा मसूड़ों से खून आने से भी बंद हो जाता है। और मुँह से दुर्गन्ध आना भी बंद हो जाता है।
नीम के तेल का दिन में दो - तीन बार उपयोग करने से टीवी जैसे बीमारी से छुटकारा मिल सकता है।
नीम के रस का प्रयोग करने से पेट में उत्पन्न पेट के कीड़े मर जाते हैं।



सोमवार, 23 नवंबर 2020

मरोड़ फली के औषधीय लाभ एवं उपयोग

           मरोड़फली (Helicteres isora)

इस पौधे को आयुर्वेद में मरोड़ फली के नाम से जाना जाता है। य़ह एक दुर्लभ आयुर्वेदिक औषधि है। यह जड़ी बूटी जंगलों और पहाड़ों पर प्राप्त होती है।
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मरोड़ फली के आयुर्वेदिक गुण एवं औषधीय सुझाव 

मरोड़ फली के फायदे - 

मरोड़ फली का उपयोग पेट की सभी वीमारियों में किया जाता है। यह एक बहुत अच्छी आयुर्वेदिक औषधि है।
गैस, एसिडिटी, कब्ज, कच्ची डकार, पेट में जलन, ववासीर, पेचिश आदि अनेक पेट की बीमारियों में उपयोग किया जाता है।

गैस के लिए -

मरोड़ फली को 10 ग्राम पीसकर चटनी वनाकर रस निकाल लें तथा उस रस में काला नमक मिलाकर पी लें। पेट के अंदर की गैस बिल्कुल ठीक हो जाएगी।

पेचिश एवं मरोड़ के लिए -

इसके लिए 10 ग्राम मरोड़ फली के रस में 10 ग्राम शहद मिलाकर एवं 100 ग्राम माड़ (चावल से निकली हुई) के साथ सेवन करने से पेचिश एवं मरोड़ में अधिक लाभ मिलता है।

त्वचा रोग में -

आयुर्वेद में मरोड़ फली का उपयोग त्वचा रोग में भी किया जाता है। जैसे - दाद, खाज, खुजली में इसका रस लगाएँ।
मरोड़ फली के आयुर्वेदिक गुण, मरोड़ फली के आयुर्वेदिक सुझाव
मरोड़ फली के आयुर्वेदिक गुण

छोटे बच्चों के दांत निकलने में दर्द की समस्या - 

जिन बच्चों के दांत निकल रहे हों। उन बच्चों के लिए मरोड़ फली और अकरकरा को पीसकर तथा शहद में मिलाकर उस स्थान पर लगाएं। इससे दांत का दर्द ठीक हो जाता है और दांत भी आसानी से निकल आते हैं। 

घाव को ठीक करने में - 

जिन लोगों को चोट लगने पर घाव हो जाता है और ठीक नहीं होता है। इसमें मरोड़ फली की छाल एवं बरगद की छाल का काड़ा बनायें। उस काड़े से यदि आप घाव को धोते हैं तो घाव जल्द ही ठीक हो जाता है। 

कान का दर्द ठीक करने में सहायक - 

कान में दर्द होने पर मरोड़ फली को अरण्डी और तिल के तेल में उबालकर ठंडा होने पर कान में 2-3 बूंदे डालने पर आराम मिलता है। 

मोतियाबिन्द में असरदार दार

मरोड़ फली के सूखे फ़ूलों को पीसकर काजल के साथ मिलाकर लगाने पर मोतियाबिन्द में लाभ मिलता है। 

मरोड़ फली के औषधीय प्रयोग अन्य रोगों में

1-मरोड़ फली की जड़ का जूस Daibetes में बहुत फायदा पहुँचाता है। 
2-आयुर्वेद के जानकर के अनुसार मरोड़ फली का इस्तेमाल कैंसर से लड़ने में लाभदायक होता है। 
3-मरोड़ फली की छाल को Dysentery के इलाज में असरदार माना गया है। 
4-मरोड़ फली के चूर्ण को पानी के साथ खाने पर कफ और वबासीर की बीमारी जड़ से खत्म हो जाती है। 
5-मरोड़ फली के चूर्ण को पानी में मिलाकर चेहरे पर लगाने से चेहरे पर दाग धब्बों से निजात मिल जाती है। 

शनिवार, 21 नवंबर 2020

बूटी गुंजा के औषधीय लाभ एवं औषधीय उपचार

             बूटी गुंजा (Coral Bead)

गुंजा बूटी में चमत्कारिक औषधि गुण पाये जाते हैं। ये रंगों में तीन प्रकार की होती है। सफेद, काली और लाल रंगों में होती है।लाल गुंजा ज्यादातर जंगलों में झाड़ियों के ऊपर पायी जाती है।इसमें सफेद गुंजा बहुत ही दुर्लभ होती है।  ये बहुत ही मुश्किल से मिलती है।
तीनों प्रकार की गुंजा की पत्तियाँ एक ही समान की होती है। जो इमली की तरह होती है लाल और सफेद गुंजा का प्रयोग औषधीय प्रयोग में किया जाता है।
आयुर्वेदिक हर्ब, औषधीय गुण एवं फायदे
आयुर्वेदिक औषधि एवं फायदे 
लाल गुंजा को अधिकतर लक्ष्मी पूजन में किया जाता है। लाल गुंजा बुखार, मुँह के रोग, स्वास रोग, नेत्र रोग, घाव, कान के रोग, गंजापन, सिरदर्द, हृदय रोग, उदर रोग,शाटिका, चर्म रोग, जोड़ों के दर्द आदि रोगों में किया जाती है।
गुंजा के बीज़ अल्प मात्रा में जहरीले होते हैं। इसलिये उनको शुद्ध करके ही इस्तेमाल करना चाहिए। यदि आपको शुद्ध करना नहीं आता है तो आप किसी आयुर्वेदाचार्य की देख - रेख में ही इसका प्रयोग करें।
साधारण तौर एक लीटर गाय के दूध में 200 से 250 ग्राम तक गुंजा के वीज उबालें और तब तक उस दूध को उबालें जब तक वह दूध एक चौथाई रह जाए। तब आप उसे उतारकर बीजों से छिलका उतार लें। इसके बाद दूध को फेंक दें और बीजों को गर्म पानी में साफ कर लें।
आयुर्वेदिक औषधि एवं फायदे, आयुर्वेदिक हर्ब
आयुर्वेदिक औषधि एवं फायदे 

बूटी गुंजा के चमत्कारिक औषधीय गुण -

यदि आपके बाल अधिक झड़ रहे हो या आप बालों को अधिक लंबा करना चाहते हो। इसके लिए गुंजा का 50 ग्राम चूर्ण एवं भृंगराज का 50 ग्राम चूर्ण 10 ग्राम छोटी इलायची 20 ग्राम जटामासी 20 ग्राम कूठ इन सबको काले तिल के तेल में डालकर पका लें। जब सारी सामग्री जल जाए तो तेल को छानकर सुरक्षित रख लें। इस तेल को लगाने से वाल बहुत ही जल्दी बढ़ते हैं। वालों का झड़ना रुक जाता है।
इसके पत्तों को पीसकर दाद पर लगाने से दाद बहुत ही जल्दी ठीक हो जाता है।
गुंजा की पत्तियों को खाने से अल्सर जैसी समस्या दूर हो जाती है। ये गुंजा की पत्तियों से oral problem जैसे - मुँह में छाले, दुर्गंध आना ऐसी समस्याओं से छुटकारा मिलता है।
जिन लोगों के आंतों में अल्सर व संक्रमण है। उनके लिए रत्ती की जड़ को उबालकर काड़ा बनाकर पीने से बहुत ही लाभ होता है। यदि आप डायविटीज के रोगी नहीं है तो लगभग 5 ग्राम रत्ती की जड़ 2-3 ग्राम मुनक्का 5 ग्राम सूखा हुआ देसी गुलाब और 2 ग्राम सौंफ मिलाकर मिट्टी के बर्तन में उबालकर काड़ा बनाकर पीये। इससे पेट साफ होगा भूख बढ़ेगी और पाचन क्रिया भी ठीक रहेगी। मुख की ताजगी के लिए इस गुंजा की पत्तियाँ बहुत ही लाभदायक है।

शंखाहुली के औषधि गुण एवं लाभ

            शंखाहुली(Rough cocklebur)

ये शंखाहुली का पौधा पूरे भारत वर्ष में वर्षा ऋतु से लेकर उसके बाद तक के मौसम में पाया जाता है। ये लगभग हर जगह पर मिलता है। ये शंखाहुली का पौधा बंजर भूमि पर तथा सड़क के किनारे पर ज्यादा पाया जाता है। इसे छोटा धतूरा भी कहते हैं।
इसे कई नामों से जाना जाता है। इसके पत्ते कुछ अंजीर के पत्तों से मिलते जुलते है। इसके फल गोल अंडाकार एवं कांटेदार होते हैं।
इसके फल की गिरी का उपयोग आयुर्वेदिक औषधि में किया जाता है। 

शंखाहुली के औषधीय लाभ

1-इस जड़ी वूटी के पत्तों को पीसकर हल्दी एवं नमक मिलाकर त्वचा रोग में लाभ मिलता है।
2-यदि किसी को मधुमक्खी, ततैया, या जहरीले कीट खाया हो तो उस जगह पर इसके पत्तों को रगड़कर रस लगाने पर जहर का असर खत्म हो जाता है। वहां पर सूजन और जलन भी नहीं पड़ती है।
3-यदि आपके चेहरे पर कील मुँहासे एवं फुंसी निकलने पर इसके पत्तों पर इसके पत्तों को पीसकर उसमे फिटकरी एवं नींबू के रस में मिलाकर चेहरे पर लेप लगाएं। इससे काफी लाभ मिलेगा और कुछ दिनों में कील मुँहासे एवं फोड़ा फुंसी से निजात मिल जाएगी।
4-ये छोटा धतूरा काफी लाभदायक होता है। यदि बालों से जुड़ी किसी भी प्रकार की समस्या से निजात दिलाने के लिए लाभदायक होता है।
जैसे - बालों का झड़ना, या बालों का समय से पहले झड़ना तो इसके लिए शंखाहुली के पत्तों का रस निकाल कर बालों की जड़ों में रगड़ने पर बालों से जुड़ी समस्या खत्म हो जाती है। 
5-इसके बीज़ के अंदर निकलने बाली गिरी को सोंप के साथ चबाने पर पेट संबंधी समस्याएं दूर हो जाती है। जैसे - गैस, कब्ज, एसिडिटी आदि रोगों में फायदा मिलता है।
6-ये छोटा धतूरा मिर्गी रोग को भी दूर करने में सहायक होता है। इसके लिए इसके पेड़ को पूरा उखाड़ कर उसे सुखाकर पाउडर बना लें ।और इसे खाने की विधि इस प्रकार उपयोग करें - 1 ग्राम शंखाहुली का पाउडर, 1 ग्राम अश्वगंधा का पाउडर, 1 ग्राम अकरकरा का पाउडर, 1 ग्राम कंसौदी का पाउडर तथा इसमें 10 ग्राम शहद मिलाकर मिर्गी आने वाले रोगी को चटाएं। रोज सुबह शाम तीन महीने तक इसका उपयोग करने से बहुत लाभ मिलेगा।
7-इसके पत्तों का काड़ा बनाकर मलेरिया के रोगी को पिलायें। इससे मलेरिया ज्वर में बहुत लाभ मिलता है इसका 20ml रस तथा नीम के पत्तों का 20 ml रस तथा तुलसी के पत्तों 20 ml रस निकाल कर तीनों का मिश्रण कर लें। 100 ml पानी में डालकर उसको उबालें। जब इसका 25 ml तक मिश्रण रह जाए। तब मलेरिया रोगी को इसका सेवन करायें  बहुत ही लाभ मिलेगा।
शंखाहुली को आयुर्वेद में औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है।

मंगलवार, 17 नवंबर 2020

मरूआ का औषधीय उपयोग एवं गुणकारी लाभ -

                    मरूआ(marjoram) 

मरूआ औषधि भारतबर्ष वर्षा ऋतु के मौसम में स्वंम उत्पन्न होता है। मरुआ तुलसी की ही प्रजाति का एक पौधा होता है। इसके पत्ते बड़े, चिकने और नुकीले होते हैं। इसे वन तुलसी भी कहते हैं।

सफेद मरुआ औषधीय गुणों से भरपूर होते है -
ये तीखा,चरपरा, रूखा तथा गर्म फल का पित्त नाशक और बात नाशक, क्रमि और कुष्ठ रोग नाशक माना जाता है।
इसकी सुगंध से मच्छर और विषैले कीड़े आसपास नहीं आते है। इसकी तीव्र महक बहुत दूर तक फैलती है।

इसके प्रयोग से कई औषधीय दवाईयां बनाई जाती है -

सिर दर्द, टी. वी., पेट दर्द, खूनी अतिसार, मोच और सूजन इन सभी रोगों में मरूआ अत्यन्त लाभकारी होता है।
गठिया रोग में मरुआ के पौधे को जड़ सहित उबालने पर और 100 मिली ग्राम मात्रा को दिन में तीन वार उपयोग करने पर गठिया में लाभ मिलता है।
इसका प्रयोग कफ,बात और पेट के कीड़े को नष्ट करने में भी किया जाता है। यह जुकाम, अरुचि, स्वास, खांसी, बुखार, सूजन, त्वचा रोग और वर्ण आदि में प्रयोग किया जाता है। 
पेट के दर्द में मरुआ के बीजों को तथा पत्तों का चार ग्राम चूर्ण सुबह - शाम लेने से  दर्द  लाभ मिलता है। 
इसके पत्तों का रस निकाल कर एवं मधु में मिलाकर सेवन करने टीबी एवं खांसी रोग में लाभ मिलता है। 

मरुआ का नेत्र रोग एवं दंत रोग का औषधीय प्रयोग

नेत्र रोगों में भी मरुआ का भी प्रयोग किया जाता है। इसके लिए मरूआ एवं लहसुन के स्वरस को एक से दो बूँद को आँखों में डालने पर आँखों की लालिमा, फूलापन आदि में लाभ मिलता है। 
मुख से दुर्गन्ध आने पर इसकी चार पत्तियाँ पानी में उबालने पर उस पानी से कुल्ला करने पर दुर्गन्ध,पायरिया एवं oral problems से छुटकारा मिलता है। 
कान के दर्द में भी इसका औषधीय उपयोग कर सकते हैं। 
मरुआ का औषधि प्रयोग फटी एड़ियों एवं वमाईयो में - 
 इसके पत्तों में Antiseptics और Antivactirial गुण  जाते हैं।जिन लोगों की एड़ी वमाई फट जाती है इसके लिए इसकी पत्ती एवं फूलों को कुछ नीम पत्ती मिलाकर पेस्ट बना ले।और उस पेस्ट को फटी एड़ी व वमाई पर करीब आधे घंटे तक लगाए रखें। इससे काफी लाभ मिलेगा। 
एनीमिया होने पर इसकी पत्तियों की चटनी बनाकर आधा से एक चम्मच तक खाने से जल्द ही एनीमिया रोग से लाभ मिलता है। 
इसको natural albandazole भी कहते हैं। 

तेजपत्ता के औषधीय और लाभदायी गुण -

                  तेजपत्ता(Bay leaf)

शास्त्रों के अनुसार तेज पत्ता को संस्कृत में श्लोक के रूप में वर्णित किया गया है।
                      "पंत्राणा श्रेष्ठ इंद पत्रम।"
ये सब पत्तों में श्रेष्ठ होता है। इसीलिए इसका नाम तेजपत्ता पड़ गया। तेजपत्ता बहुत ही उपयोगी होता है। तेजपत्ता आपके घर में रसोई में बनने वाली सब्जी पकवान इत्यादि में प्रयोग के अलावा आपकी सुंदरता को बढ़ाने के उपचार में भी किया जाता है।

तेजपत्ता का त्वचा में औषधीय फायदा -

तेजपत्ता का इस्तेमाल आप अपने चेहरे के कील मुँहासे, दाग धब्बे और चेहरे की चमक को बढ़ाने में काफी उपयोगी है। इसके लिए आप तेजपत्ता को पानी में उबालकर इस पानी अपने चेहरे को धोते है। तो ये आपके चेहरे को साफ और चेहरे से दाग धब्बों को मिटा देगा।
                    

तेजपत्ता का बालों में प्रयोग-

1-बालों को नर्म, चमकदार एवं मुलायम बनाने के लिए तेजपत्ता का उपयोग कर सकते हैं। और ये बहुत ज्यादा असरदार होता है। इसके लिए आप तेजपत्ता को तेल में डालकर तेल को उबाल लें। और उस तेल को छानकर बालों में उपयोग करें तथा दिन में बालों की दो या तीन बार मसाज करें।
ऐसा करने से आपके बाल बहुत ज्यादा नर्म और चमकदार हो जाएंगे।

तेजपत्ता का दांतों में उपयोग - 

तेजपत्ता को अगर आप दंत मंजन की तरह इस्तेमाल करते है। तो यह आपके दांतों की सफ़ेदी और दांतों की चमक के लिए फायदेमंद है। और ऐसा करने से आपके दांतों की चमक के साथ ही साथ oral problem से भी छुटकारा मिलता है। इसका प्रयोग आप सिर्फ सप्ताह में एक बार भी कर सकते हैं।                

तेजपत्ता के औषधीय उपयोग पेट संबंधी रोगों में

चाय में तेजपत्ता का इस्तेमाल करके कब्ज, एसिडिटी और मरोड़ जैसी समस्याओं से राहत पा सकते हैं। 
तेजपत्ता को उबालकर उस पानी को ठंडा करके पीने से किडनी की स्टोन और किडनी से जुड़ी समस्याओं से राहत पा सकते हैं। 

तेजपत्ता के औषधीय गुण-

1-रुक - रुक कर बोलने वाले या हकलाने वाले व्यक्ति को तेजपत्ता जीभ के नीचे रखकर चूसना चाहिए इससे हकलाना एवं तुतलाना दूर हो जाता है। 
2-तेजपत्ता का चूर्ण बनाकर खाने से पेशाब में शुगर बनना रुक जाता है। इससे मधुमेह में भी लाभ मिलता है। 
3-तेजपत्ता के तेल की कुछ बूंदे को पानी में मिलाकर पीने से अच्छी नींद आती है।
4-तेजपत्ता का उपयोग सर्दी, खांसी, जुकाम, गले की खंरास तथा chest problem, अस्थमा आदि परेशानी में तीन से चार तेजपत्ता को पानी में उबालकर प्रयोग करने से लाभ मिलेगा। 
5-तेजपत्ता में Anti-inflammatory तत्व पाए जाते है तो जोड़ों के दर्द में बहुत लाभदायक होता है। 
तेजपत्ता में बहुत से आयुर्वेदिक गुण होते हैं।

शुक्रवार, 13 नवंबर 2020

शतावरी के लाभदायी गुण और उपयोग

      शतावरी (Asparagus racemosus) 

शतावरी को आयुर्वेद में औषधियों की रानी माना जाता है। इसे अनेक रोगों में प्रभावशाली माना गया है। सजावटी पौधों में भी इसका उपयोग किया जाता है।
       
                

 शतावरी के औषधीय गुण - 

मानसिक तनाव, भय, चिंता, अवसाद को कम करने में इसका प्रयोग किया जाता है।
Antialrgic, antispasmodic,blood pressure को कम करने में किया जाता है।
Antiseptics, anti-inflammatory, lacsit रोग प्रतिरोधक क्षमता को कम करने बाले गुण पाए जाते हैं।
Daioretic, शरीर की सफाई करने बाले, टानिक तथा पौष्टिक गुणों के साथ-साथ बहुत से औषधीय गुण शतावरी पौधे में पाये जाते हैं।
                         

शतावरी के फायदे -

1-गलसुआ जो एक viral infaction है। इसमे आप शतावरी के बीजों को पीसकर गलसुआ वाली जगह पर इसका लेप लगा सकते है।
2-फोड़े फुंसी में आप शतावरी और देशी घी मिलाकर पेस्ट बनाकर उपयोग करने से इसके द्वारा निजात पा सकते हैं।
3-बदहजमी, दस्त, उल्टी, अल्सर, एसिडिटी, कोलाइटिस, इन्फेक्शन आदि को दूर करने में मदद करती है।
4-शतावरी बदहजमी और अपच के होने पर इसकी जाड़ों के साथ पानी में शहद मिलाकर पी सकते हैं। अगर एसिडिटी की समस्या हो तो शतावरी की कन्द का जूस एवं पानी बराबर मात्रा में लेकर सेवन करें।
5-पित्त दोष के कारण होने वाले पेट के दर्द में भी का फायदा लिया जा सकता है। रोज सुबह 10 मिली ग्राम शतावरी के रस में 10-12 ग्राम मधु मिलाकर पीने से लाभ मिलता है।
6-शतावरी के इस्तेमाल से रंतौंधी में भी लाभ मिलता है। घी में शतावरी के मुलायम पत्तों को भूनकर सेवन करें।
शतावरी में बहुत से आयुर्वेदिक 
एवं औषधीय गुण होते हैं। 

रविवार, 8 नवंबर 2020

सदाबहार के लाभ एवं औषधीय गुण -

        सदाबहार (periwinkle flower)

सदाबहार को नयन तारा, वारामासी, संधि पुष्प आदि कहा जाता है। इसके फूल पांच पंखुड़ियों वाले होते हैं।
इनके फूल सिर्फ लाल और गुलाबी दो तरह के ही होते हैं।
                      

सदाबहार के औषधीय लाभ

1- मधुमेह के लिए पौधा रामबाण। इसके लिए  करेला,खीरा,एक टमाटर लेकर गर्म धोकर जूस निकालें।  उसमें सदाबहार के 5-7 फूल और 4-5 नीम की पत्तियाँ   पीसकर डाल दें और सेवन करें।  इससे लाभ मिलेगा एवं शरीर के विजातीय तत्व (toxins) भी निकल जाएंगे।
2- यदि आपको कोई ततैया आदि काट तो इसके लिए  सदाबहार के पत्तों का रस निकालकर उस जगह पर लगायें।  इससे न ही सूजन आएगी और न ही दर्द होगा। 
और इससे जल्द ही आराम मिल जायेगा।

3-
जिनको त्वचा संबंधी रोग शरीर में फोड़ा,फुंसी है। उनके  लिए इस सदाबहार के 3-4  को चबाकर खा जाए। इससे रक्त शुद्धि होगी। 
4- इस पौधे की जड़े भी अत्यधिक गुणकारी होती है।यह शारीरिक कमजोरी को दूर करने में बहुत लाभकारी है।  इसकी 100 ग्राम जड़ लेकर तथा 400 ग्राम धागा मिश्री लेकर मिश्रण कर लें और पाउडर बना लें।
सुबह - शाम सेवन शारीरिक कमजोरी दूर हो जाती है। 
5- यदि आप मोटापा से परेशान है या हताश है तो इसके लिए सदाबहार की 2-3 पत्तियाँ और थोड़ी जड़ लेकर पानी में उबालकर सुबह खाली पेट पिये।इसके नियमित सेवन से मोटापा से राहत मिलेगी।तथा डायबिटीज में अत्यंत लाभ मिलेगा। 
6- जिन लोगों को चोट लगने पर घाव  हो जाता है।और पश निकलने लगता है।इसके लिए आप इसकी जड़ को घिसकर के लेप की तरह उस घाव पर लगाएं। जल्द ही घाव सूख जाएगा। 
संक्रमण की संभावना दूर हो जाएगी। 
आयुर्वेद में सदाबहार मधुमेह के लिए एक लाभान्वित औषधि है। 

शुक्रवार, 6 नवंबर 2020

भृंगराज के प्रभावशाली औषधीय गुण एवं विशेषताएँ

             भृंगराज (False daisy)

भृंगराज एक प्राकृतिक औषधि है।जिसका दूसरा नाम एकलिप्टाअल्वा है। ऐतिहासिक रूप से आयुर्वेद में भृंगराज सबसे अधिक औषधि के रूप में जुड़ा हुआ है।
जो उपचार हेतु परम्परागत भारतीय तरीका है। लेकिन इसके सबसे ज्यादा होने वाले लाभों ने इसे विश्व में लोकप्रिय बनाया है। 
                              
आयुर्वेद में इसे रसायन माना जाता है। ये औषधि पूरे भारत वर्ष में पायी जाती है। विशेष रूप से दल दलीय स्थानो में पायी जाती है भृंगराज की चार प्रजातियाँ इसके फ़ूलों के आधार पर पायी जाती है। इसमें सबसे अधिक सफेद भृंगराज प्रचलित है। 
                    
ये अपने तीखे कड़वेपन स्वाद हल्केपन और सूखेपन के कारण ये कफ दोष और अपनी गर्म शक्ति के कारण बात दोष को संतुलित करता है। इस प्रकार यह त्रिदोष पर प्रभाव डालता है इसके साथ ही ये बालों का झड़ना रोकने, बालों को घना बनाने, जिगर, रूसी हरड़, सूजन को कम करने, पेट की पीड़ा कम करने, कैंसर को रोकने, प्रदर प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा देने और रक्तचाप में उपयोगी होता है। 

भृंगराज से होने वाले फायदे - 

 पीलिया रोग का सीधा असर जिगर और उसकी कार्य क्षमता को प्रभावित करता है भृंगराज लिवर को स्वस्थ रखने का सबसे प्रभावशाली टॉनिक माना जाता है। पीलिया जैसी बीमारी को ठीक करने में भृंगराज सबसे अधिक प्रभावशाली औषधि है। अगर आप वबासीर जैसी असहनीय बीमारी से पीड़ित हैं। तो भृंगराज इसमे सबसे अच्छी औषधि के रूप में उपयोगी है। 
भृंगराज इसमे आशाजनक और सुखदायी परिणाम देता है। 
                   

पीलिया के उपचार में - 

इसके लिए लगभग 10 ग्राम भृंगराज के पत्ते तथा 2 ग्राम साबुत काली मिर्च को पीसकर इसका पेस्ट बना लें।तथा उस पेस्ट को छाछ में मिलाकर दिन में दो बार इसका सेवन करें। पीलिया रोग को दूर करने के लिए यह एक बहुत अच्छा उपाय है। 
भृंगराज पेट संबंधी कई रोगों को ठीक करने में सहायक होता है - 
भृंगराज के सुबह में चार से पांच पत्ते को खाया जाए तो इससे कब्ज की समस्या ठीक होने लगती है। इसके अलावा भृंगराज के गुण मूत्र संक्रमण में भी काफी लाभदायक होते हैं। भृंगराज में जीवाणुरोधी गुण और Antiseptics गुण भी पाए जाते हैं। जो मूत्र संक्रमण को रोकने में अत्यधिक मदद करता है। भृंगराज के नियमित सेवन से पाचन शक्ति संयमित बनी रहती है। भृंगराज हमारी बड़ी आंत में पाए जाने वाले विषैले पदार्थो को निष्कासित करने में मदद करता है।
भृंगराज रस नई ऊर्जा को उत्पन्न करने के लिए भी काफी  होता है। भृंगराज के रस को लंबे समय तक कायाकल्प के लिए उपयोग किया जा सकता है।
आयुर्वेद में भृंगराज एक शक्तिशाली औषधि के रूप में वर्णित है।Bbh

रविवार, 1 नवंबर 2020

साधारण दिखने बाली अमरबेल में होते है औषधीय गुण -

           अमरबेल (cuscuta polygonorum)

अमरबेल एक parasitic (परजीवी) पौधा है। ये वानस्पति दूसरे पेड़ - पौधे के ऊपर अपना जीवन यापन करती है।
य़ह साधारण दिखने बाली अमरबेल औषधि गुणों से भरपूर होती है।
 ये पीले रंग की होती है। इसके स्वभाव के कारण इसे आयुर्वेद में विशेष स्थान दिया गया है। 
                   

अमरबेल से होने वाले फायदे - 

ये गंजेपन के अचूक औषधि है। इसके लिए इस अमरबेल को लेकर पीस लें और पेस्ट बना लें। इसमें दो चम्मच तिल का तेल मिलाए और इस पेस्ट को लगभग आधे घण्टे तक उस गंजे स्थान पर मसाज करे। इस उपचार से कुछ दिनों में गंजेपन से छुटकारा मिल जाता है। 
                   
जोड़ों के दर्द में, गठिया बात में भी फायदा करता है। इसकी लंबी पतली लताएँ लेकर हल्का गर्म करके दर्द बाले स्थान पर बाँध लें। और ये गठिया, बात के दर्द से छुटकारा मिल जाता है और सूजन भी खत्म कर देती है। 
                   
अमरबेल वबासीर मे काफी फायदा पहुंचाती है। इसके लिय 20 ग्राम अमरबेल का रस लेकर उसमे 5 ग्राम जीरे का पाउडर और 5 ग्राम काली मिर्च लेकर इन तीनों का मिश्रण बना लें। इसका सेवन दिन में दो बार करे इससे य़ह वबासीर को एक हफ्ते में खत्म कर देगी। 
चोट और मोच के लग जाने पर अमरबेल को पीसकर पेस्ट बनाये और उसमे दो चम्मच देसी घी मिलाकर चोट और मोच बाली जगह पर लगाए। इससे जल्द आराम मिलता है। 
                   
ये बच्चों की लंबाई बढ़ाने में भी उपयोगी है। 
इसके लिए अमरबेल का रस एक चम्मच निकालकर के एक गिलास दुध में मिलाकर छोटे बच्चों को पिलाएं।इससे उसकी लंबाई बढ़ना शुरू हो जाएगी। 
ये अमरबेल पेट के कीड़ों को मारने में भी असरदार है। इसके लिए इसका एक चम्मच लगातार तीन दिन तक सेवन करें। 
अमरबेल में बहुत से औषधीय गुण होते हैं। 

मखमली (मुर्गाकेश) के औषधीय लाभदायी गुण

                  मखमली (silosiya)

इस चमत्कारिक औषधि में मखमल के समान फूल आते हैं। इसको देखने में मुर्गा की कलगी के समान लगता है। इसी कारण इसे मुर्गाकेश भी कहते हैं।
                    
इसे अंग्रेजी में silosiya कहते हैं। इसकी कई प्रजातियां होती है। जिसे अलग - अलग वैज्ञानिक नामों से जाना जाता है। इसकी पत्तियों की सब्ज़ी बनाकर खायी जाती है इसका स्वभाव ठंडा होता है इसी कारण ये कई सारी बीमारियों में फायदेमंद होता है।
                   

मखमली (मुर्गाकेश) के स्वास्थ्य लाभ -

य़ह गर्मियों में होने वाले सिरदर्द में राहत पहुँचाता है। इसके लिए इसके पत्तों का पेस्ट बनाकर सर पर लगाना चाहिए। इसकी प्रकृति ठंडी होने के कारण गर्मी में होने वाले सिरदर्द में काफी राहत पहुँचाता है।
                   
अगर आपकी आँखों में जलन हो या आंखें लाल हो गयी हो तो ऐसे में लाल मखमली के फ़ूलों को जलाकर इसकी राख बना ले। इसकी 10 ग्राम मात्रा लेकर गाय के 10 ग्राम घी के साथ 10 ग्राम कपूर लेकर अच्छे से मिलाय और फिर काजल की तरह आँखों पर लगाए। इससे आँखों की लालिमा दूर हो जाती है और साथ में ही आँखों में जलन भी दूर हो जाती है।
इसके बीज़ भी बहुत लाभकारी होते हैं इसके बीज़ 500 मिली ग्राम लेकर शहद मिलाकर खाने से सभी प्रकार की खांसी मे राहत मिलती है।
                     
इसके ताजे पत्ते का रस निकालकर कुछ बूंदे नाक में डालने पर नकसीर मे राहत मिलती है।
अगर कहीं पर फोड़ा फुंसी हो गया हो तो मखमली के पत्तों के साथ लौकी के पत्तों की बराबर मात्रा में लेकर इसका पेस्ट बनाए। और इस पेस्ट मे आप थोड़ा - सा नमक मिला लें। अब इस पेस्ट को फोड़ा बाली जगह पर लगाए। आप दिन में दो बार इसका लेप करे। इस प्रकिया को 4-5 दिन लगातार करने से फोड़ा एवं फुंसी में राहत मिलती है
ये मखमली (मुर्गाकेश) में बहुत लाभकारी औषधीय गुण होते हैं।

शनिवार, 31 अक्तूबर 2020

पहाड़ी इमली (Hill tamarind) के आयुर्वेदिक गुण एवं फायदे......

         पहाड़ी इमली (Hill tamarind)

पहाड़ी इमली का वीज सामन्य इमली के वीज से कम से कम 15-20 गुना अधिक वड़ा होता है। एक पहाड़ी इमली के वीज में लगभग 100 बादाम के बराबर ताकत होती है। और ये कई रोगों से लड़ने में मदद करता है।
                 

पहाड़ी इमली के फायदे..

खूनी वबासीर में ये पहाड़ी इमली का बीज़ लाभकारी है। कितनी भी पुरानी से पुरानी वबासीर में भी अधिक से अधिक लाभ मिलता है। 
इसमे पहाड़ी इमली के बीज़ की गिरी जलाकर राख बना ले तथा 5 ग्राम राख को 50-100 ग्राम दही में मिलाकर सेवन करने से वबासीर जड़ से खत्म हो जाती है। रोज सुबह शाम सेवन करने से खूनी वबासीर जल्दी ठीक हो जाएगी। 
                     
बार - बार पेशाब का आना,  पेशाब में जलन होना ऐसे रोगियों के लिए पहाड़ी इमली के बीज़ की गिरी को 10 ग्राम की मात्रा में लेकर सुबह और शाम को गाय के दुध से सेवन करे। 
पेशाब में जलन, पेशाब का जल्दी - जल्दी लगना, पेशाब पीली आना आदि रोगों में जल्दी राहत मिल जाती है। 
जो लोग heavy diet लेते है और अच्छे health building protein का प्रयोग करते हैं। उसके बाबजूद भी उनका शरीर उभर नहीं पाता है और शरीर में ताकत नहीं आती है उसके लिए आप पहाड़ी इमली का बीज़ लेकर उसे पानी में तीन दिन तक भिगोय रखें। 
                   
उसके बाद उसकी गिरी को सुखाकर उसका पाउडर बना ले तथा 10 ग्राम पाउडर को धागा मिश्री में मिला लें और सुबह शाम उसका सेवन करने से शरीर शक्तिशाली बनता है। 
इसकी गिरी का पाउडर बनाकर तथा उसमें गुड़ का मिश्रण करके 6-6 ग्राम की गोलियां बना ले और सुबह - शाम इसका सेवन करने से शरीर अधिक बलशाली बनता है। 
पहाड़ी इमली का उपयोग आयुर्वेद के में बहुत ही लाभदायक  रोगों का उपचार हेतु किया जाता है। 

भूमि आंवला(Land gooseberry) के चमत्कारिक गुण तथा इसके प्रयोग कई रोगों में औषधीय रूप में किया जाता है।

         भूमि आंवला (Land gooseberry) 

आयुर्वेद के अनुसार भूमि आंवला का प्रयोग चिकित्सा कार्यों में किया जाता है। भूमि आंवला को अमृत बूटी भी कहते हैं। भूमि आंवला के पौधे शाखाएं युक्त सीधे तथा जमीन पर फैलने वाले होते है।
इसके पत्ते छोटे तथा चपटे होते हैं। इस पर छोटे - छोटे फूल भी लगते है जो छोटे और गोल आंवले के समान ही होते है।
                

भूमि आंवला के फायदे -

शरीर के विजातीय तत्वों को बाहर निकालने में इसकी क्षमता बेजोड़ है।
पीलिया रोग में इसका उपचार रामबाण माना जाता है।
मुह के छालों, मसूड़े में सूजन, मूत्र व जननांगों के विकारों में इसका उपयोग किया जाता है।
टूटी हड्डियों में भी इसे पीसकर लगाया जाता है।
ये पेट के कीड़े को पनपने नहीं देता है तथा लिवर को भी मजबूत करता है।
एनीमिया, अस्थमा, ब्रोकाइटिस, खांसी, पेचिश, सूजा और हेपटाइटिस आदि रोगों में लाभकारी होता है।
अगर आपका विलरूवीन बड़ गया हो या पीलिया हो तो ऐसे में भूमि आंवला के पौधे को उखाड़ कर उसका काड़ा बनाएँ तथा उस काड़े का सेवन सुबह - शाम करे। पीलिया तथा विलरूवीन में फायदा मिल जाता है।
                 
अगर आप महीने में केवल एक बार इसका सेवन करते हैं। तो पूरे वर्ष भर आपको लिवर की समस्या से छुटकारा मिलता है।
अगर आपके यकृत (liver) में घाव हो जाते हैं इसमे य़ह बेहद लाभकारी है।
कई वार छालों में राहत नहीं मिलती है और विभिन्न प्रकार के छालों की समस्या उत्पन्न हो जाती है। और आप खाना भी नहीं कहा पाते हैं ऐसे में आप भूमि आंवला के पत्तों को चवाएं।
                 
छालों में जल्द ही छुटकारा मिल जाएगा।
य़ह मधुमेह के रोगियों के लिए भी काफी लाभकारी है। 
मधुमेह एक खतरनाक रोग है। 
ऐसे में मधुमेह से बचने के लिए आप भूमि आंवला में काली मिर्च मिलाकर इसका सेवन करे।इससे आप मधुमेह जैसी खतरनाक बीमारी से छुटकारा पा सकेंगे। 
य़ह आंतों के रोग में भी काफी लाभदायक है आंतों का रोग या assrtive colitis हो गया हो ।तो ऐसे में भूमि आंवला और दूब के पौधे को जड़ से उखाड़कर 3 से 4 दिन तक इसके रस का सेवन करे। रक्तस्राव बंद हो जाएगा साथ ही साथ आंतों के रोग में भी जल्दी लाभ मिलेगा। 
ये अमृत बूटी भूमि आंवला हमारे जीवन में बहुत ही लाभदायक है। 

बुधवार, 28 अक्तूबर 2020

गोखरू के आयुर्वेदिक गुण एवं कई रोगों की औषधि तथा उपचार किया जाता है।

                गोखरू (Bindii)

गोखरू का पौधा बालू तथा रेत में उगता है। ये पौधा ज्यादातर रेतीले स्थानों पर मिलता है गोखरू का पौधा अगस्त, सितंबर से लेकर फ़रवरी माह तक देखने को मिलता है।
गोखरू का स्वाद सूखने पर ठंडा हो जाता है। इसकी प्रकृति ठंडी होती है।

गोखरू के फायदे

                 

घनेरी के फायदे एवं औषधि गुण तथा इसके चमत्कारिक गुण


              घनेरी (Lattina camera)
घनेरी वनस्पति एक ऐसी वनस्पति है जो हमारे आस-पास ही पायी जाती है लेकिन इसके गुणों के वारे में हम नहीं जानते हैं इस जड़ी-बूटी को राइमुनिया भी कहा जाता है। संस्कृति भाषा में इसे अग्निमंत्र भी कहा जाता है। ये पौधा झाड़ी नुमा होता है और बहुत फैलता है। 
इसके फायदे एवं उपयोग -
 यदि आप सर्दी, जुकाम, सरदर्द से परेसान है तो इसके पत्तों को तोड़कर हाथों से मसल ले और सूंघे इसे सूंघने मात्र से सरदर्द ठीक हो जाता है इस पूरे पत्ते में ऐसे तत्व पाए जाते हैं जो मच्छरों को भगाने में बहुत कारगर है। 
ऐसे में आप घनेरी के पत्तों को तोड़कर घर में मच्छरों के वास करने बाले स्थानो पर डाले मच्छर का वास उस स्थान से हट जाएगा। 
               
इसके पत्तों को तोड़कर पानी में उबालकर चाय बनाकर पीने से शरीर में स्फूर्ति आ जाती है। और कमजोरी दूर हो जाती है
इसकी पत्तियाँ Antioxidants से भरपूर होती है इसमे जीवाणु रोधी गुण पाए जाते हैं। 
               
इसकी पत्तियों को पीसकर और इसका रस निकाल कर घाव पर लगाने से घाव शीघ्र से अति शीघ्र भर जाता है। तथा फोड़ा फुंसी पर लगाने से जल्दी ही ठीक हो जाते हैं। 
ये दांतों के दर्द को भी ठीक करता है। इसके लिए इसकी पत्तियों को हल्की धीमी आग पर तपाये जब एक चौथाई पत्तियाँ रह जाए तब उस पानी से कुल्ला करे। 
इसके प्रयोग से दातों के दर्द में बहुत आराम मिलता है। इसकी दातुन करने से भी दातों के दर्द में आराम मिलता है। 
बुखार में भी इसका प्रयोग करने से आराम मिलता है। 
घनेरी भी एक प्राकृतिक आयुर्वेदिक औषधि है। 

बुधवार, 21 अक्तूबर 2020

चांगेरी के औषधीय गुण एवं नशा छुड़ाने की कारगर औषधि इसका उपयोग आयुर्वेद में बहुत से रोगों में किया जाता है।

        चांगेरी (creeping woodsorrel) 

इस औषधि को आयुर्वेद में चांगेरी कहा जाता है इसे तीन पत्ता घास भी कहते है।संस्कृत साहित्य में इसे अम्ल पत्रिका कहते है य़ह लगभग हर स्थान पर पायी जाती है। नमी वाले स्थानो पर यह औषधि वर्ष भर पायी जाती है। इसे ज्यादातर खट्टी मीठी घास कहा जाता है ज्यादातर यह पौधा खेतों में खर-पतवार के रूप में पाया जाता है इसके पौधे पर पीले तथा गुलाबी रंग के पुष्प लगते हैं। 

              

ये चांगेरी औषधि अनेक प्रकार की औषधि गुणों से भरपूर होती है-

1-अगर आपको सिर दर्द की समस्या रहती है तो चांगेरी के पत्तों को पीसकर लगाएँ कुछ दिनों में दर्द से बिल्कुल छुटकारा मिल जाएगा। 

2-अगर खांसी, बलगम या कफ की समस्या होती है तो इसके पत्तों का रस निकालकर पानी में दो - दो बूंद मिलाकर नाक में डाले इससे जल्दी ही आराम होता है। 

                   

3-अगर छोटे बच्चों को भूख न लग रही हो या पाचन शक्ति कमजोर हो रही है तो ऐसे में चांगेरी के ताजे पत्तों के साथ पुदीना और अदरक की चटनी बनाकर खिलाए चटनी को खाने से बच्चों की भूख बहुत लगती है। 

4-अगर किसी की आंतों मे infaction की समस्या है तो चांगेरी के पत्तों का रस निकालकर इसका सेवन करे इससे जल्दी ही आंतों मे इन्फेक्शन ठीक होता है। 

                
5-ये चांगेरी चेहरे की सुन्दरता बढ़ाने के लिए फायदेमंद होती है इस चांगेरी के ताजे पत्तों का रस निकाल कर और सफेद चंदन में मिलाकर लेप बनाये और प्रतिदिन चेहरे पर करीब आधे घंटे तक लगाए और फिर चेहरे को पानी से साफ़ कर ले ऐसा करने से चेहरे की चमक और गोरापन बढ़ता है और चेहरे की झुर्रियां भी मिट जाती है। 

6-ये चांगेरी नशा छुड़ाने की एक कारगर औषधि है चाहे भांग, अफीम या शराब किसी भी प्रकार का नशा हो इसमे चांगेरी के पत्तों का रस निकाल कर प्रतिदिन पिलायें इससे धीरे-धीरे नशे की लत छुट जाती है इससे नशा करने की इच्छाशक्ति खत्म हो जाती है। 

इस चांगेरी का आयुर्वेद में एक बहुत ही लाभदायक औषधि के रूप में वर्णन किया गया है। 

मंगलवार, 13 अक्तूबर 2020

शेरपंजी (बाघपंजा) के चमत्कारिक गुण एवं इनका औषधीय उपयोग

          शेरपंजा (Tiger foot morning glory) 

इस चमत्कारिक औषधि की ज्यादातर शेरपंजी या वाघपंजा के नाम से पहचाना जाता है। ये औषधि एक तरह की वेल होती है जो भारतवर्ष में वर्षा ऋतु के मौसम में लगभग हर जगह पायी जाती है इसकी पत्तियों का आकार शेर तथा बाघ के पंजों की तरह होता है।                                                           

इस बेल में तो दो तरह की प्रजाति पायी जाती है एक मे पांच - पांच पत्ते और दूसरी मे सात - सात पत्ते पाए जाते है ।ये बेल रूएदार पायी जाती है। इसे हिंदी में पंचतंत्रीय के नाम से पहचाना जाता है और अंग्रेजी में Tiger foot morning glory के नाम से जानते हैं।

             

इस बेल औषधि में Antivactirial और Anti-inflammatory गुण पाए जाते हैं। और ये औषधि Antioxidants से भरपूर होती है। सदियों से इस औषधि का उपयोग त्वचा रोग में किया जाता है। 

इसके पत्तों का रस लगाने से फोड़ा, फुंसी खत्म हो जाते हैं। इसके पत्तों का पेस्ट बनाकर चेहरे पर लगाने से कील, मुँहासे से छुटकारा मिलता है और चेहरे पर निखार आ जाता है। इसके पत्तों को पीसकर घाव में लगाने से घाव शीघ्र भर जाता है इस औषधि में कैंसर विरोधी गुण पाए जाते हैं। 

इस शेरपंजी औषधि का उपयोग आयुर्वेद में बहुत से रोगों का उपचार करने हेतु किया गया है।

सोमवार, 12 अक्तूबर 2020

दूधिया(दुग्दिका) के औषधीय उपयोग

             दूधिया (Euphoribia hirta

ये दूधिया औषधि भारत के लगभग हर प्रांत में पायी जाती है। ये दूधिया औषधि हमारे आस-पास खेतों में भी खर-पतवार के रूप में पायी जाती है। आमतौर पर देखा जाए तो दूधिया घास दो प्रकार की होती है। 

छोटी दूधि को नागार्जुनी भी कहते हैं ये जमीन पर छत्तो के आकार में फैलती है। और इसके कारण जमीन सुंदर और सुशोभित लगती है इसकी पत्तियाँ छोटी-छोटी और गोल आकार की होती है। 

छोटी दूधि और बड़ी दूधि गुण धर्म में एक समान होती है इसके पुष्प गुच्छों में होते हैं और सूक्ष्म होते हैं। 

                

दूधि के गुण धर्म और विधि के बारे में -

ये कफ और पित्त नाशक है इसके साथ-साथ रक्त शोधक और वातवर्धक है।

अगर आपके चेहरे पर कील, मुँहासे, दाद, खुजली और दाग धब्बे आदि है दूधि औषधि का दुध निकालकर उसे अपने चेहरे पर लगाए कुछ ही  दिनों में आपका चेहरा स्वच्छ और सुंदर लगने लगेगा। 

अगर आपके माथे के बाल झड़ रहे हो तो दूधि औषधि को जड़ से उखाड़ ले और स्वच्छ पानी में धोकर दूधि का रस निकाल लें। इसके साथ-साथ पीले कनेर का रस निकालकर उसमें मिला लें और सिर के गंजे हिस्से पर घिसे दिन में दो बार लगाएं लगभग 15 दिनों तक ये उपचार करने से गंजापन दूर हो जाता है इसके कारण अगर कोई एलर्जिक समस्या हो तो इसका प्रयोग बंद कर दे। 

                    

आँखों के लिए भी दूधि बहुत ही लाभदायक है आँखों की रंतौंधी में छोटी दूधि के दूध में सलाई को तरकर नेत्रों मे सलाई को अच्छी तरह फिराएं इससे वेदना होती है लेकिन थोड़ी देर में वेदना शांत हो जाती है। इसका उपयोग करने से रतौंधी रोग जड़ से खत्म हो जाएगी। 

                     
दूधि को लगभग 10 ग्राम पीसकर पानी के साथ लगातर सेवन करने से आंतें बहुत ही मजबूत हो जाती है। जिसके कारण संग्रहणीय और अतिसार मिट जाएगा। 

दूधि के पाउडर को शहद के साथ मिलाकर इसका सेवन करने से दमा रोग मे बहुत ही लाभ मिलता है। 

छोटी दूधि और बड़ी दूधि का पाउडर बनाकर विधि पूर्वक सेवन करने से अनेक रोगों में फायदा मिलता है। छोटी दूधि और बड़ी दूधि दोनों का उपयोग आयुर्वेद में लाभहित के लिए किया गया है। 

शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2020

कोषपुष्पी (कंचट) के औषधीय गुण एवं फायदे

                     कोषपुष्पी(commelina benghalensis) 

कोषपुष्पी को कंचट के नाम से भी जाना जाता है। ये औषधि पूरे भारतवर्ष में आसानी से मिल जाती है ये औषधि वर्षा ऋतु में अधिक एवं हर जगह पर पायी जाती है। 
इसका तना बहुत ही मुलायम होता है अधिक पानी में होने के कारण इस पौधे का तासीर शीतल होता है। 

कोषपुष्पी के औषधीय गुण -

                
1- सुबह खाली पेट इसका सेवन करने से पेट संबंधी तमाम         रोगों से छुटकारा मिलता है कंचट के पौधे से रस निकाल         कर 30-40 मिली ग्राम रस का सेवन करे। 
2- किडनी में अगर दर्द, सूजन आदि समस्या है तो 30 मिली       ग्राम रस निकाल कर सुबह खाली पेट एवं दोपहर, शाम         को इसका सेवन करने से किडनी की सारी समस्या दूर हो       जाती है। 
                
3- ये कंचट बूटी शुगर के मरीजों के लिए भी काफी फायदेमंद      है अगर कोई बहुत ज्यादा इंसुलिन का इंजेक्शन लेता है         तो शुगर को कंट्रोल करने के लिए इसका भी प्रयोग कर         सकते है। 
4-इसका रस हमारे शरीर में जाने के बाद पेट को ठंडा करता     है तथा खून को साफ करने में मदद करता है
5- पथरी और कुष्ठ रोगों में ये कोषपुष्पी बहुत ही रामबाण है
6- पेट संबंधी विकारों मे ये कोषपुष्पी का पौधा बहुत ही              लाभदायक है। 
                 
7- खूनी एवं वादी बवासीर में कोषपुष्पी के पौधे का बहुत ही       लाभदायक उपयोग होता है इसके लिए बहुत ही सरल सा       उपयोग किया जाता है इसके 4-5 पत्तों को लेकर उनको         मसलकर रस निकाल लें और मस्सों पर 5-6 दिन तक           प्रयोग करें इसका मस्सा सूखकर निकल जाएगा और             बवासीर की समस्या से छुटकारा मिल जाएगा। 
8-ये कोषपुष्पी का पौधा बहुत सी विटामिन तत्वों से भरा            होता है। 

रविवार, 4 अक्तूबर 2020

अतिवला(Abutilon indicum)

            अतिवला(Abutilon indicum)

अतिवला की प्रशंसा भारतीय आयुर्वेद ग्रंथों में की गई है इसके पत्ते अंडाकार, ह्रदय के आकार वाले होते हैं। और अग्र भाग पर नुकीले होते हैं। अतिवला की गिनती आयुर्वेद के सर्वश्रेष्ठ ताक़तवर औषधियों में इसकी गिनती होती है ये औषधि ताकत का खजाना होती है। 

                  

इसे संस्कृति में अतिवला कहा जाता है। इसका दूसरा नाम करेटी है इसको गुजराती में कपाट कहते हैं इसे अँग्रेजी मे countrymilo, indianmilo कहते हैं। 

इसका वानस्पतिक नाम Abutilon indicum है इसकी चार प्रजातियां पायी जाती है-वला, अतिवला,राजवला और महावला ये चारो बलाएँ शक्ति का खजाना मानी जाती है। 

दुबले पतले लोगों के लिए ये औषधि रामबाण होती है ये शरीर की कमजोरी को खत्म कर देती है। 

इसका औषधीय प्रयोग निम्न प्रकार से करते है -

1-शरीर की कमजोरी दूर करने के लिए इसकी जड़ों को दूध में उबालकर सेवन करने से फायदा मिलता है इसके बीजों का भी सेवन दूध में मिलाकर किया जाता है। 

2-अतिवला का ताजा रस घी तथा शहद के साथ एक वर्ष लगातर सेवन करने से शरीर अधिक बलशाली बनता है। 

3-अतिवला के पत्तों का काड़ा बनाकर उसको ठंडा करके आँखों धोने से आँखों की सभी प्रकार की समस्या दूर होती है। 4-अतिवला का प्रयोग दाँतों के दर्द के लिए भी किया जाता है इसका काड़ा बनाकर गरारा करने से दांतों के रोगों से छुटकारा मिलता है। 

                     

5-पुरानी खांसी को ठीक करने में अतिवला बहुत ही लाभदायक है इसके पीले फ़ूलों का चूर्ण बना लें जिसकी मात्रा 1-2 ग्राम होनी चाहिए उस चूर्ण को देशी घी के साथ लेने से पुरानी से पुरानी खांसी खत्म हो जाती है खून बाली उल्टी में काफी लाभ मिलता है। 

6-वबसीर में अतिवला का उपयोग रामबाण है इसके बीजों को कूटकर शाम को पानी में भिगो दे सुबह खाली पेट 10-20 मिलीग्राम पानी का सेवन करने से वबासीर रोग से निजात मिलती है। 

7-आपको अगर मूत्र से सम्बंधित कोई रोग हो तो अतिवला की जड़ को पानी में उबालकर उसका सेवन करने से आपको बहुत ज्यादा लाभ मिलेगा ।

8-आयुर्वेद में अतिवला का उपयोग ज्वर के निवारण में किया जाता है अतिवला के 10-20 मिलीग्राम काड़ा में 1 ग्राम सोठ का चूर्ण मिलाए और शाम को रख दे सुबह उस पानी को पी लें वार - बार बुखार आने से निजात मिल जाएगी। 

आयुर्वेद में अतिवला का उपयोग गंभीर से गंभीर रोग के उपचार हेतु किया जाता है। 

नीम के औषधीय गुण एवं फायदे - - - - - -

नीम के औषधीय गुण एवं फायदे - - -   नीम भारत वर्ष का बहुत ही चर्चित और औषधीय वृक्ष माना जाता है ये भारत वर्ष में कल्प - वृक्ष भी माना जाता है...