सोमवार, 23 नवंबर 2020

मरोड़ फली के औषधीय लाभ एवं उपयोग

           मरोड़फली (Helicteres isora)

इस पौधे को आयुर्वेद में मरोड़ फली के नाम से जाना जाता है। य़ह एक दुर्लभ आयुर्वेदिक औषधि है। यह जड़ी बूटी जंगलों और पहाड़ों पर प्राप्त होती है।
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मरोड़ फली के आयुर्वेदिक गुण एवं औषधीय सुझाव 

मरोड़ फली के फायदे - 

मरोड़ फली का उपयोग पेट की सभी वीमारियों में किया जाता है। यह एक बहुत अच्छी आयुर्वेदिक औषधि है।
गैस, एसिडिटी, कब्ज, कच्ची डकार, पेट में जलन, ववासीर, पेचिश आदि अनेक पेट की बीमारियों में उपयोग किया जाता है।

गैस के लिए -

मरोड़ फली को 10 ग्राम पीसकर चटनी वनाकर रस निकाल लें तथा उस रस में काला नमक मिलाकर पी लें। पेट के अंदर की गैस बिल्कुल ठीक हो जाएगी।

पेचिश एवं मरोड़ के लिए -

इसके लिए 10 ग्राम मरोड़ फली के रस में 10 ग्राम शहद मिलाकर एवं 100 ग्राम माड़ (चावल से निकली हुई) के साथ सेवन करने से पेचिश एवं मरोड़ में अधिक लाभ मिलता है।

त्वचा रोग में -

आयुर्वेद में मरोड़ फली का उपयोग त्वचा रोग में भी किया जाता है। जैसे - दाद, खाज, खुजली में इसका रस लगाएँ।
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मरोड़ फली के आयुर्वेदिक गुण

छोटे बच्चों के दांत निकलने में दर्द की समस्या - 

जिन बच्चों के दांत निकल रहे हों। उन बच्चों के लिए मरोड़ फली और अकरकरा को पीसकर तथा शहद में मिलाकर उस स्थान पर लगाएं। इससे दांत का दर्द ठीक हो जाता है और दांत भी आसानी से निकल आते हैं। 

घाव को ठीक करने में - 

जिन लोगों को चोट लगने पर घाव हो जाता है और ठीक नहीं होता है। इसमें मरोड़ फली की छाल एवं बरगद की छाल का काड़ा बनायें। उस काड़े से यदि आप घाव को धोते हैं तो घाव जल्द ही ठीक हो जाता है। 

कान का दर्द ठीक करने में सहायक - 

कान में दर्द होने पर मरोड़ फली को अरण्डी और तिल के तेल में उबालकर ठंडा होने पर कान में 2-3 बूंदे डालने पर आराम मिलता है। 

मोतियाबिन्द में असरदार दार

मरोड़ फली के सूखे फ़ूलों को पीसकर काजल के साथ मिलाकर लगाने पर मोतियाबिन्द में लाभ मिलता है। 

मरोड़ फली के औषधीय प्रयोग अन्य रोगों में

1-मरोड़ फली की जड़ का जूस Daibetes में बहुत फायदा पहुँचाता है। 
2-आयुर्वेद के जानकर के अनुसार मरोड़ फली का इस्तेमाल कैंसर से लड़ने में लाभदायक होता है। 
3-मरोड़ फली की छाल को Dysentery के इलाज में असरदार माना गया है। 
4-मरोड़ फली के चूर्ण को पानी के साथ खाने पर कफ और वबासीर की बीमारी जड़ से खत्म हो जाती है। 
5-मरोड़ फली के चूर्ण को पानी में मिलाकर चेहरे पर लगाने से चेहरे पर दाग धब्बों से निजात मिल जाती है। 

शनिवार, 21 नवंबर 2020

बूटी गुंजा के औषधीय लाभ एवं औषधीय उपचार

             बूटी गुंजा (Coral Bead)

गुंजा बूटी में चमत्कारिक औषधि गुण पाये जाते हैं। ये रंगों में तीन प्रकार की होती है। सफेद, काली और लाल रंगों में होती है।लाल गुंजा ज्यादातर जंगलों में झाड़ियों के ऊपर पायी जाती है।इसमें सफेद गुंजा बहुत ही दुर्लभ होती है।  ये बहुत ही मुश्किल से मिलती है।
तीनों प्रकार की गुंजा की पत्तियाँ एक ही समान की होती है। जो इमली की तरह होती है लाल और सफेद गुंजा का प्रयोग औषधीय प्रयोग में किया जाता है।
आयुर्वेदिक हर्ब, औषधीय गुण एवं फायदे
आयुर्वेदिक औषधि एवं फायदे 
लाल गुंजा को अधिकतर लक्ष्मी पूजन में किया जाता है। लाल गुंजा बुखार, मुँह के रोग, स्वास रोग, नेत्र रोग, घाव, कान के रोग, गंजापन, सिरदर्द, हृदय रोग, उदर रोग,शाटिका, चर्म रोग, जोड़ों के दर्द आदि रोगों में किया जाती है।
गुंजा के बीज़ अल्प मात्रा में जहरीले होते हैं। इसलिये उनको शुद्ध करके ही इस्तेमाल करना चाहिए। यदि आपको शुद्ध करना नहीं आता है तो आप किसी आयुर्वेदाचार्य की देख - रेख में ही इसका प्रयोग करें।
साधारण तौर एक लीटर गाय के दूध में 200 से 250 ग्राम तक गुंजा के वीज उबालें और तब तक उस दूध को उबालें जब तक वह दूध एक चौथाई रह जाए। तब आप उसे उतारकर बीजों से छिलका उतार लें। इसके बाद दूध को फेंक दें और बीजों को गर्म पानी में साफ कर लें।
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आयुर्वेदिक औषधि एवं फायदे 

बूटी गुंजा के चमत्कारिक औषधीय गुण -

यदि आपके बाल अधिक झड़ रहे हो या आप बालों को अधिक लंबा करना चाहते हो। इसके लिए गुंजा का 50 ग्राम चूर्ण एवं भृंगराज का 50 ग्राम चूर्ण 10 ग्राम छोटी इलायची 20 ग्राम जटामासी 20 ग्राम कूठ इन सबको काले तिल के तेल में डालकर पका लें। जब सारी सामग्री जल जाए तो तेल को छानकर सुरक्षित रख लें। इस तेल को लगाने से वाल बहुत ही जल्दी बढ़ते हैं। वालों का झड़ना रुक जाता है।
इसके पत्तों को पीसकर दाद पर लगाने से दाद बहुत ही जल्दी ठीक हो जाता है।
गुंजा की पत्तियों को खाने से अल्सर जैसी समस्या दूर हो जाती है। ये गुंजा की पत्तियों से oral problem जैसे - मुँह में छाले, दुर्गंध आना ऐसी समस्याओं से छुटकारा मिलता है।
जिन लोगों के आंतों में अल्सर व संक्रमण है। उनके लिए रत्ती की जड़ को उबालकर काड़ा बनाकर पीने से बहुत ही लाभ होता है। यदि आप डायविटीज के रोगी नहीं है तो लगभग 5 ग्राम रत्ती की जड़ 2-3 ग्राम मुनक्का 5 ग्राम सूखा हुआ देसी गुलाब और 2 ग्राम सौंफ मिलाकर मिट्टी के बर्तन में उबालकर काड़ा बनाकर पीये। इससे पेट साफ होगा भूख बढ़ेगी और पाचन क्रिया भी ठीक रहेगी। मुख की ताजगी के लिए इस गुंजा की पत्तियाँ बहुत ही लाभदायक है।

शंखाहुली के औषधि गुण एवं लाभ

            शंखाहुली(Rough cocklebur)

ये शंखाहुली का पौधा पूरे भारत वर्ष में वर्षा ऋतु से लेकर उसके बाद तक के मौसम में पाया जाता है। ये लगभग हर जगह पर मिलता है। ये शंखाहुली का पौधा बंजर भूमि पर तथा सड़क के किनारे पर ज्यादा पाया जाता है। इसे छोटा धतूरा भी कहते हैं।
इसे कई नामों से जाना जाता है। इसके पत्ते कुछ अंजीर के पत्तों से मिलते जुलते है। इसके फल गोल अंडाकार एवं कांटेदार होते हैं।
इसके फल की गिरी का उपयोग आयुर्वेदिक औषधि में किया जाता है। 

शंखाहुली के औषधीय लाभ

1-इस जड़ी वूटी के पत्तों को पीसकर हल्दी एवं नमक मिलाकर त्वचा रोग में लाभ मिलता है।
2-यदि किसी को मधुमक्खी, ततैया, या जहरीले कीट खाया हो तो उस जगह पर इसके पत्तों को रगड़कर रस लगाने पर जहर का असर खत्म हो जाता है। वहां पर सूजन और जलन भी नहीं पड़ती है।
3-यदि आपके चेहरे पर कील मुँहासे एवं फुंसी निकलने पर इसके पत्तों पर इसके पत्तों को पीसकर उसमे फिटकरी एवं नींबू के रस में मिलाकर चेहरे पर लेप लगाएं। इससे काफी लाभ मिलेगा और कुछ दिनों में कील मुँहासे एवं फोड़ा फुंसी से निजात मिल जाएगी।
4-ये छोटा धतूरा काफी लाभदायक होता है। यदि बालों से जुड़ी किसी भी प्रकार की समस्या से निजात दिलाने के लिए लाभदायक होता है।
जैसे - बालों का झड़ना, या बालों का समय से पहले झड़ना तो इसके लिए शंखाहुली के पत्तों का रस निकाल कर बालों की जड़ों में रगड़ने पर बालों से जुड़ी समस्या खत्म हो जाती है। 
5-इसके बीज़ के अंदर निकलने बाली गिरी को सोंप के साथ चबाने पर पेट संबंधी समस्याएं दूर हो जाती है। जैसे - गैस, कब्ज, एसिडिटी आदि रोगों में फायदा मिलता है।
6-ये छोटा धतूरा मिर्गी रोग को भी दूर करने में सहायक होता है। इसके लिए इसके पेड़ को पूरा उखाड़ कर उसे सुखाकर पाउडर बना लें ।और इसे खाने की विधि इस प्रकार उपयोग करें - 1 ग्राम शंखाहुली का पाउडर, 1 ग्राम अश्वगंधा का पाउडर, 1 ग्राम अकरकरा का पाउडर, 1 ग्राम कंसौदी का पाउडर तथा इसमें 10 ग्राम शहद मिलाकर मिर्गी आने वाले रोगी को चटाएं। रोज सुबह शाम तीन महीने तक इसका उपयोग करने से बहुत लाभ मिलेगा।
7-इसके पत्तों का काड़ा बनाकर मलेरिया के रोगी को पिलायें। इससे मलेरिया ज्वर में बहुत लाभ मिलता है इसका 20ml रस तथा नीम के पत्तों का 20 ml रस तथा तुलसी के पत्तों 20 ml रस निकाल कर तीनों का मिश्रण कर लें। 100 ml पानी में डालकर उसको उबालें। जब इसका 25 ml तक मिश्रण रह जाए। तब मलेरिया रोगी को इसका सेवन करायें  बहुत ही लाभ मिलेगा।
शंखाहुली को आयुर्वेद में औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है।

मंगलवार, 17 नवंबर 2020

मरूआ का औषधीय उपयोग एवं गुणकारी लाभ -

                    मरूआ(marjoram) 

मरूआ औषधि भारतबर्ष वर्षा ऋतु के मौसम में स्वंम उत्पन्न होता है। मरुआ तुलसी की ही प्रजाति का एक पौधा होता है। इसके पत्ते बड़े, चिकने और नुकीले होते हैं। इसे वन तुलसी भी कहते हैं।

सफेद मरुआ औषधीय गुणों से भरपूर होते है -
ये तीखा,चरपरा, रूखा तथा गर्म फल का पित्त नाशक और बात नाशक, क्रमि और कुष्ठ रोग नाशक माना जाता है।
इसकी सुगंध से मच्छर और विषैले कीड़े आसपास नहीं आते है। इसकी तीव्र महक बहुत दूर तक फैलती है।

इसके प्रयोग से कई औषधीय दवाईयां बनाई जाती है -

सिर दर्द, टी. वी., पेट दर्द, खूनी अतिसार, मोच और सूजन इन सभी रोगों में मरूआ अत्यन्त लाभकारी होता है।
गठिया रोग में मरुआ के पौधे को जड़ सहित उबालने पर और 100 मिली ग्राम मात्रा को दिन में तीन वार उपयोग करने पर गठिया में लाभ मिलता है।
इसका प्रयोग कफ,बात और पेट के कीड़े को नष्ट करने में भी किया जाता है। यह जुकाम, अरुचि, स्वास, खांसी, बुखार, सूजन, त्वचा रोग और वर्ण आदि में प्रयोग किया जाता है। 
पेट के दर्द में मरुआ के बीजों को तथा पत्तों का चार ग्राम चूर्ण सुबह - शाम लेने से  दर्द  लाभ मिलता है। 
इसके पत्तों का रस निकाल कर एवं मधु में मिलाकर सेवन करने टीबी एवं खांसी रोग में लाभ मिलता है। 

मरुआ का नेत्र रोग एवं दंत रोग का औषधीय प्रयोग

नेत्र रोगों में भी मरुआ का भी प्रयोग किया जाता है। इसके लिए मरूआ एवं लहसुन के स्वरस को एक से दो बूँद को आँखों में डालने पर आँखों की लालिमा, फूलापन आदि में लाभ मिलता है। 
मुख से दुर्गन्ध आने पर इसकी चार पत्तियाँ पानी में उबालने पर उस पानी से कुल्ला करने पर दुर्गन्ध,पायरिया एवं oral problems से छुटकारा मिलता है। 
कान के दर्द में भी इसका औषधीय उपयोग कर सकते हैं। 
मरुआ का औषधि प्रयोग फटी एड़ियों एवं वमाईयो में - 
 इसके पत्तों में Antiseptics और Antivactirial गुण  जाते हैं।जिन लोगों की एड़ी वमाई फट जाती है इसके लिए इसकी पत्ती एवं फूलों को कुछ नीम पत्ती मिलाकर पेस्ट बना ले।और उस पेस्ट को फटी एड़ी व वमाई पर करीब आधे घंटे तक लगाए रखें। इससे काफी लाभ मिलेगा। 
एनीमिया होने पर इसकी पत्तियों की चटनी बनाकर आधा से एक चम्मच तक खाने से जल्द ही एनीमिया रोग से लाभ मिलता है। 
इसको natural albandazole भी कहते हैं। 

तेजपत्ता के औषधीय और लाभदायी गुण -

                  तेजपत्ता(Bay leaf)

शास्त्रों के अनुसार तेज पत्ता को संस्कृत में श्लोक के रूप में वर्णित किया गया है।
                      "पंत्राणा श्रेष्ठ इंद पत्रम।"
ये सब पत्तों में श्रेष्ठ होता है। इसीलिए इसका नाम तेजपत्ता पड़ गया। तेजपत्ता बहुत ही उपयोगी होता है। तेजपत्ता आपके घर में रसोई में बनने वाली सब्जी पकवान इत्यादि में प्रयोग के अलावा आपकी सुंदरता को बढ़ाने के उपचार में भी किया जाता है।

तेजपत्ता का त्वचा में औषधीय फायदा -

तेजपत्ता का इस्तेमाल आप अपने चेहरे के कील मुँहासे, दाग धब्बे और चेहरे की चमक को बढ़ाने में काफी उपयोगी है। इसके लिए आप तेजपत्ता को पानी में उबालकर इस पानी अपने चेहरे को धोते है। तो ये आपके चेहरे को साफ और चेहरे से दाग धब्बों को मिटा देगा।
                    

तेजपत्ता का बालों में प्रयोग-

1-बालों को नर्म, चमकदार एवं मुलायम बनाने के लिए तेजपत्ता का उपयोग कर सकते हैं। और ये बहुत ज्यादा असरदार होता है। इसके लिए आप तेजपत्ता को तेल में डालकर तेल को उबाल लें। और उस तेल को छानकर बालों में उपयोग करें तथा दिन में बालों की दो या तीन बार मसाज करें।
ऐसा करने से आपके बाल बहुत ज्यादा नर्म और चमकदार हो जाएंगे।

तेजपत्ता का दांतों में उपयोग - 

तेजपत्ता को अगर आप दंत मंजन की तरह इस्तेमाल करते है। तो यह आपके दांतों की सफ़ेदी और दांतों की चमक के लिए फायदेमंद है। और ऐसा करने से आपके दांतों की चमक के साथ ही साथ oral problem से भी छुटकारा मिलता है। इसका प्रयोग आप सिर्फ सप्ताह में एक बार भी कर सकते हैं।                

तेजपत्ता के औषधीय उपयोग पेट संबंधी रोगों में

चाय में तेजपत्ता का इस्तेमाल करके कब्ज, एसिडिटी और मरोड़ जैसी समस्याओं से राहत पा सकते हैं। 
तेजपत्ता को उबालकर उस पानी को ठंडा करके पीने से किडनी की स्टोन और किडनी से जुड़ी समस्याओं से राहत पा सकते हैं। 

तेजपत्ता के औषधीय गुण-

1-रुक - रुक कर बोलने वाले या हकलाने वाले व्यक्ति को तेजपत्ता जीभ के नीचे रखकर चूसना चाहिए इससे हकलाना एवं तुतलाना दूर हो जाता है। 
2-तेजपत्ता का चूर्ण बनाकर खाने से पेशाब में शुगर बनना रुक जाता है। इससे मधुमेह में भी लाभ मिलता है। 
3-तेजपत्ता के तेल की कुछ बूंदे को पानी में मिलाकर पीने से अच्छी नींद आती है।
4-तेजपत्ता का उपयोग सर्दी, खांसी, जुकाम, गले की खंरास तथा chest problem, अस्थमा आदि परेशानी में तीन से चार तेजपत्ता को पानी में उबालकर प्रयोग करने से लाभ मिलेगा। 
5-तेजपत्ता में Anti-inflammatory तत्व पाए जाते है तो जोड़ों के दर्द में बहुत लाभदायक होता है। 
तेजपत्ता में बहुत से आयुर्वेदिक गुण होते हैं।

शुक्रवार, 13 नवंबर 2020

शतावरी के लाभदायी गुण और उपयोग

      शतावरी (Asparagus racemosus) 

शतावरी को आयुर्वेद में औषधियों की रानी माना जाता है। इसे अनेक रोगों में प्रभावशाली माना गया है। सजावटी पौधों में भी इसका उपयोग किया जाता है।
       
                

 शतावरी के औषधीय गुण - 

मानसिक तनाव, भय, चिंता, अवसाद को कम करने में इसका प्रयोग किया जाता है।
Antialrgic, antispasmodic,blood pressure को कम करने में किया जाता है।
Antiseptics, anti-inflammatory, lacsit रोग प्रतिरोधक क्षमता को कम करने बाले गुण पाए जाते हैं।
Daioretic, शरीर की सफाई करने बाले, टानिक तथा पौष्टिक गुणों के साथ-साथ बहुत से औषधीय गुण शतावरी पौधे में पाये जाते हैं।
                         

शतावरी के फायदे -

1-गलसुआ जो एक viral infaction है। इसमे आप शतावरी के बीजों को पीसकर गलसुआ वाली जगह पर इसका लेप लगा सकते है।
2-फोड़े फुंसी में आप शतावरी और देशी घी मिलाकर पेस्ट बनाकर उपयोग करने से इसके द्वारा निजात पा सकते हैं।
3-बदहजमी, दस्त, उल्टी, अल्सर, एसिडिटी, कोलाइटिस, इन्फेक्शन आदि को दूर करने में मदद करती है।
4-शतावरी बदहजमी और अपच के होने पर इसकी जाड़ों के साथ पानी में शहद मिलाकर पी सकते हैं। अगर एसिडिटी की समस्या हो तो शतावरी की कन्द का जूस एवं पानी बराबर मात्रा में लेकर सेवन करें।
5-पित्त दोष के कारण होने वाले पेट के दर्द में भी का फायदा लिया जा सकता है। रोज सुबह 10 मिली ग्राम शतावरी के रस में 10-12 ग्राम मधु मिलाकर पीने से लाभ मिलता है।
6-शतावरी के इस्तेमाल से रंतौंधी में भी लाभ मिलता है। घी में शतावरी के मुलायम पत्तों को भूनकर सेवन करें।
शतावरी में बहुत से आयुर्वेदिक 
एवं औषधीय गुण होते हैं। 

रविवार, 8 नवंबर 2020

सदाबहार के लाभ एवं औषधीय गुण -

        सदाबहार (periwinkle flower)

सदाबहार को नयन तारा, वारामासी, संधि पुष्प आदि कहा जाता है। इसके फूल पांच पंखुड़ियों वाले होते हैं।
इनके फूल सिर्फ लाल और गुलाबी दो तरह के ही होते हैं।
                      

सदाबहार के औषधीय लाभ

1- मधुमेह के लिए पौधा रामबाण। इसके लिए  करेला,खीरा,एक टमाटर लेकर गर्म धोकर जूस निकालें।  उसमें सदाबहार के 5-7 फूल और 4-5 नीम की पत्तियाँ   पीसकर डाल दें और सेवन करें।  इससे लाभ मिलेगा एवं शरीर के विजातीय तत्व (toxins) भी निकल जाएंगे।
2- यदि आपको कोई ततैया आदि काट तो इसके लिए  सदाबहार के पत्तों का रस निकालकर उस जगह पर लगायें।  इससे न ही सूजन आएगी और न ही दर्द होगा। 
और इससे जल्द ही आराम मिल जायेगा।

3-
जिनको त्वचा संबंधी रोग शरीर में फोड़ा,फुंसी है। उनके  लिए इस सदाबहार के 3-4  को चबाकर खा जाए। इससे रक्त शुद्धि होगी। 
4- इस पौधे की जड़े भी अत्यधिक गुणकारी होती है।यह शारीरिक कमजोरी को दूर करने में बहुत लाभकारी है।  इसकी 100 ग्राम जड़ लेकर तथा 400 ग्राम धागा मिश्री लेकर मिश्रण कर लें और पाउडर बना लें।
सुबह - शाम सेवन शारीरिक कमजोरी दूर हो जाती है। 
5- यदि आप मोटापा से परेशान है या हताश है तो इसके लिए सदाबहार की 2-3 पत्तियाँ और थोड़ी जड़ लेकर पानी में उबालकर सुबह खाली पेट पिये।इसके नियमित सेवन से मोटापा से राहत मिलेगी।तथा डायबिटीज में अत्यंत लाभ मिलेगा। 
6- जिन लोगों को चोट लगने पर घाव  हो जाता है।और पश निकलने लगता है।इसके लिए आप इसकी जड़ को घिसकर के लेप की तरह उस घाव पर लगाएं। जल्द ही घाव सूख जाएगा। 
संक्रमण की संभावना दूर हो जाएगी। 
आयुर्वेद में सदाबहार मधुमेह के लिए एक लाभान्वित औषधि है। 

शुक्रवार, 6 नवंबर 2020

भृंगराज के प्रभावशाली औषधीय गुण एवं विशेषताएँ

             भृंगराज (False daisy)

भृंगराज एक प्राकृतिक औषधि है।जिसका दूसरा नाम एकलिप्टाअल्वा है। ऐतिहासिक रूप से आयुर्वेद में भृंगराज सबसे अधिक औषधि के रूप में जुड़ा हुआ है।
जो उपचार हेतु परम्परागत भारतीय तरीका है। लेकिन इसके सबसे ज्यादा होने वाले लाभों ने इसे विश्व में लोकप्रिय बनाया है। 
                              
आयुर्वेद में इसे रसायन माना जाता है। ये औषधि पूरे भारत वर्ष में पायी जाती है। विशेष रूप से दल दलीय स्थानो में पायी जाती है भृंगराज की चार प्रजातियाँ इसके फ़ूलों के आधार पर पायी जाती है। इसमें सबसे अधिक सफेद भृंगराज प्रचलित है। 
                    
ये अपने तीखे कड़वेपन स्वाद हल्केपन और सूखेपन के कारण ये कफ दोष और अपनी गर्म शक्ति के कारण बात दोष को संतुलित करता है। इस प्रकार यह त्रिदोष पर प्रभाव डालता है इसके साथ ही ये बालों का झड़ना रोकने, बालों को घना बनाने, जिगर, रूसी हरड़, सूजन को कम करने, पेट की पीड़ा कम करने, कैंसर को रोकने, प्रदर प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा देने और रक्तचाप में उपयोगी होता है। 

भृंगराज से होने वाले फायदे - 

 पीलिया रोग का सीधा असर जिगर और उसकी कार्य क्षमता को प्रभावित करता है भृंगराज लिवर को स्वस्थ रखने का सबसे प्रभावशाली टॉनिक माना जाता है। पीलिया जैसी बीमारी को ठीक करने में भृंगराज सबसे अधिक प्रभावशाली औषधि है। अगर आप वबासीर जैसी असहनीय बीमारी से पीड़ित हैं। तो भृंगराज इसमे सबसे अच्छी औषधि के रूप में उपयोगी है। 
भृंगराज इसमे आशाजनक और सुखदायी परिणाम देता है। 
                   

पीलिया के उपचार में - 

इसके लिए लगभग 10 ग्राम भृंगराज के पत्ते तथा 2 ग्राम साबुत काली मिर्च को पीसकर इसका पेस्ट बना लें।तथा उस पेस्ट को छाछ में मिलाकर दिन में दो बार इसका सेवन करें। पीलिया रोग को दूर करने के लिए यह एक बहुत अच्छा उपाय है। 
भृंगराज पेट संबंधी कई रोगों को ठीक करने में सहायक होता है - 
भृंगराज के सुबह में चार से पांच पत्ते को खाया जाए तो इससे कब्ज की समस्या ठीक होने लगती है। इसके अलावा भृंगराज के गुण मूत्र संक्रमण में भी काफी लाभदायक होते हैं। भृंगराज में जीवाणुरोधी गुण और Antiseptics गुण भी पाए जाते हैं। जो मूत्र संक्रमण को रोकने में अत्यधिक मदद करता है। भृंगराज के नियमित सेवन से पाचन शक्ति संयमित बनी रहती है। भृंगराज हमारी बड़ी आंत में पाए जाने वाले विषैले पदार्थो को निष्कासित करने में मदद करता है।
भृंगराज रस नई ऊर्जा को उत्पन्न करने के लिए भी काफी  होता है। भृंगराज के रस को लंबे समय तक कायाकल्प के लिए उपयोग किया जा सकता है।
आयुर्वेद में भृंगराज एक शक्तिशाली औषधि के रूप में वर्णित है।Bbh

रविवार, 1 नवंबर 2020

साधारण दिखने बाली अमरबेल में होते है औषधीय गुण -

           अमरबेल (cuscuta polygonorum)

अमरबेल एक parasitic (परजीवी) पौधा है। ये वानस्पति दूसरे पेड़ - पौधे के ऊपर अपना जीवन यापन करती है।
य़ह साधारण दिखने बाली अमरबेल औषधि गुणों से भरपूर होती है।
 ये पीले रंग की होती है। इसके स्वभाव के कारण इसे आयुर्वेद में विशेष स्थान दिया गया है। 
                   

अमरबेल से होने वाले फायदे - 

ये गंजेपन के अचूक औषधि है। इसके लिए इस अमरबेल को लेकर पीस लें और पेस्ट बना लें। इसमें दो चम्मच तिल का तेल मिलाए और इस पेस्ट को लगभग आधे घण्टे तक उस गंजे स्थान पर मसाज करे। इस उपचार से कुछ दिनों में गंजेपन से छुटकारा मिल जाता है। 
                   
जोड़ों के दर्द में, गठिया बात में भी फायदा करता है। इसकी लंबी पतली लताएँ लेकर हल्का गर्म करके दर्द बाले स्थान पर बाँध लें। और ये गठिया, बात के दर्द से छुटकारा मिल जाता है और सूजन भी खत्म कर देती है। 
                   
अमरबेल वबासीर मे काफी फायदा पहुंचाती है। इसके लिय 20 ग्राम अमरबेल का रस लेकर उसमे 5 ग्राम जीरे का पाउडर और 5 ग्राम काली मिर्च लेकर इन तीनों का मिश्रण बना लें। इसका सेवन दिन में दो बार करे इससे य़ह वबासीर को एक हफ्ते में खत्म कर देगी। 
चोट और मोच के लग जाने पर अमरबेल को पीसकर पेस्ट बनाये और उसमे दो चम्मच देसी घी मिलाकर चोट और मोच बाली जगह पर लगाए। इससे जल्द आराम मिलता है। 
                   
ये बच्चों की लंबाई बढ़ाने में भी उपयोगी है। 
इसके लिए अमरबेल का रस एक चम्मच निकालकर के एक गिलास दुध में मिलाकर छोटे बच्चों को पिलाएं।इससे उसकी लंबाई बढ़ना शुरू हो जाएगी। 
ये अमरबेल पेट के कीड़ों को मारने में भी असरदार है। इसके लिए इसका एक चम्मच लगातार तीन दिन तक सेवन करें। 
अमरबेल में बहुत से औषधीय गुण होते हैं। 

मखमली (मुर्गाकेश) के औषधीय लाभदायी गुण

                  मखमली (silosiya)

इस चमत्कारिक औषधि में मखमल के समान फूल आते हैं। इसको देखने में मुर्गा की कलगी के समान लगता है। इसी कारण इसे मुर्गाकेश भी कहते हैं।
                    
इसे अंग्रेजी में silosiya कहते हैं। इसकी कई प्रजातियां होती है। जिसे अलग - अलग वैज्ञानिक नामों से जाना जाता है। इसकी पत्तियों की सब्ज़ी बनाकर खायी जाती है इसका स्वभाव ठंडा होता है इसी कारण ये कई सारी बीमारियों में फायदेमंद होता है।
                   

मखमली (मुर्गाकेश) के स्वास्थ्य लाभ -

य़ह गर्मियों में होने वाले सिरदर्द में राहत पहुँचाता है। इसके लिए इसके पत्तों का पेस्ट बनाकर सर पर लगाना चाहिए। इसकी प्रकृति ठंडी होने के कारण गर्मी में होने वाले सिरदर्द में काफी राहत पहुँचाता है।
                   
अगर आपकी आँखों में जलन हो या आंखें लाल हो गयी हो तो ऐसे में लाल मखमली के फ़ूलों को जलाकर इसकी राख बना ले। इसकी 10 ग्राम मात्रा लेकर गाय के 10 ग्राम घी के साथ 10 ग्राम कपूर लेकर अच्छे से मिलाय और फिर काजल की तरह आँखों पर लगाए। इससे आँखों की लालिमा दूर हो जाती है और साथ में ही आँखों में जलन भी दूर हो जाती है।
इसके बीज़ भी बहुत लाभकारी होते हैं इसके बीज़ 500 मिली ग्राम लेकर शहद मिलाकर खाने से सभी प्रकार की खांसी मे राहत मिलती है।
                     
इसके ताजे पत्ते का रस निकालकर कुछ बूंदे नाक में डालने पर नकसीर मे राहत मिलती है।
अगर कहीं पर फोड़ा फुंसी हो गया हो तो मखमली के पत्तों के साथ लौकी के पत्तों की बराबर मात्रा में लेकर इसका पेस्ट बनाए। और इस पेस्ट मे आप थोड़ा - सा नमक मिला लें। अब इस पेस्ट को फोड़ा बाली जगह पर लगाए। आप दिन में दो बार इसका लेप करे। इस प्रकिया को 4-5 दिन लगातार करने से फोड़ा एवं फुंसी में राहत मिलती है
ये मखमली (मुर्गाकेश) में बहुत लाभकारी औषधीय गुण होते हैं।

नीम के औषधीय गुण एवं फायदे - - - - - -

नीम के औषधीय गुण एवं फायदे - - -   नीम भारत वर्ष का बहुत ही चर्चित और औषधीय वृक्ष माना जाता है ये भारत वर्ष में कल्प - वृक्ष भी माना जाता है...